Monday, May 12, 2025

कालचक्र की चाल

 "कालचक्र की चाल"

समय की यह रेखा नहीं सीधी,
यह है एक कालचक्र, अनोखी लीला विधि की।
जहाँ नौ ग्रह नाचते तारे बनकर,
बारह राशियों में करते रहस्य उजागर।

चन्द्रमा मन का राजा, राहु देता छाया,
शनि का धैर्य सिखाता, मंगल हिम्मत लुटाया।
बुध से बुद्धि चमकती, गुरु से ज्ञान उगता,
शुक्र से प्रेम बहता, सूर्य आत्मा को जगाता।

इन नक्षत्रों की भाषा नहीं है शब्दों की मोहताज,
यह तो मन की गहराइयों में करते संवाद।
जो इसे जाने, वो भटके नहीं कभी जीवन में,
जो इसे माने, वो समुंदर पार करे संजीवन में।

यह विज्ञान है, अंधविश्वास नहीं,
मैंने इसे जिया है, अनुभव किया है कहीं।
कभी राहु ने उलझाया, कभी शनि ने बैठाया,
पर अंततः गुरु ने राह दिखाया, मंगल ने लड़ाया।

कर्म ही कुंजी है, भाग्य उसका दर्पण,
ग्रह हमें ठहराते हैं, पर नियति बनती है अपन।
आत्मा अजर है, लेकिन समय परीक्षा लेता है,
जो ग्रहों की चाल समझे, वही प्रभु से मेल करता है।

इसलिए ओ साधक!
अंधेरे से मत घबरा, वह शनि का खेल है,
प्रकाश उसी के बाद है, यह गुरु का मेल है।
हर कष्ट, हर सुख — एक संदेश है गहरा,
कालचक्र ही है वह भाषा, जो बताता है सब कुछ सच्चा।

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"कालचक्रस्य रहस्य"
(शास्त्रीय श्लोक शैली में)

श्लोक १:
कालः स एव न भ्रान्तिरूपो,
नवग्रहाः तस्य नटनाटकाः।
द्वादश राशिषु नित्यं सञ्चरन्ति,
मानसवृत्तिं च यथार्थं दर्शयन्ति॥

श्लोक २:
चन्द्रः मनोभूतिविदः प्रकाशः,
राहुश्च मोहस्य प्रतापकारः।
शनैश्चरः धैर्यनिधिः प्रबोधः,
मङ्गलः कर्मोत्साहवर्द्धकः सदा॥

श्लोक ३:
बुधो बुद्धेः कुशलो नियन्ता,
गुरुः ज्ञानस्य परमं प्रकाशम्।
शुक्रः सौन्दर्यप्रेमसंयोगः,
सूर्य आत्मा तेजोविकासकः च॥

श्लोक ४:
नक्षत्रमण्डले रहस्यमस्ति,
यत्र ग्रहाः सञ्चरन्ति नियमेन।
कर्मफलदातृत्वेन ते स्थिता,
जीवनमार्गं दीपयन्ति शनैः॥

श्लोक ५:
न हि भाग्यं स्थावरं निश्चलं वा,
कर्मणा भवति सर्वं सुधर्मम्।
ग्रहबलं तु साधनं पथिकस्य,
प्रयत्नेन लभ्यते सिद्धिलक्ष्यम्॥

श्लोक ६:
अयं न विज्ञानात् बहिर्गतः पन्था,
इयं तु वेदाङ्गविद्या पुरातनी।
स्वानुभवेन मे साक्षात्कारः,
कालचक्रं नूनं सत्यं प्रमाणम्॥

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