Monday, May 12, 2025

मैली चादर ओढ़ के कैसे द्वार तुम्हारे आऊं

मैली चादर ओढ़ के कैसे,  
द्वार तुम्हारे प्रभु मैं आऊं।  
जीवन की यह चदरिया झीनी,  
कबीर की सीख, सदा स्मरणी।  

वो चादर कबीर ने ओढ़ी,  
जैसी की तैसी धर दीन्हीं चदरिया,  
झीनी रे झीनी, पावन सा मन,  
न कर मैल से उसको मलिन।  

बड़े भाग मानुष तन पाया,  
सुर दुर्लभ, सुख का आधार माया।  
पर हम भूले, स्वार्थ में डूबे,  
चदरिया मैली, मन के कसूर से।  

क्या लाए थे, क्या ले जाएंगे,  
सच पूछो, कुछ न साथ जाएगा।  
फिर क्यों लोभ, क्यों माया का मोह,  
मन के मैल से चदरिया है रोह।  

देखो नेता, सत्ता के भूखे,  
मोदी, ट्रंप, सब स्वार्थ में डूबे।  
न चिंता इनको, जीवन का मोल,  
बस कुर्सी की चाहत, मन का ढोल।  

उसको न इस बात की चिंता,  
क्यों बहुमूल्य जीवन व्यर्थ गंवाया।  
न कभी सोचा, न मन में तौला,  
जीवन में क्या खोया, क्या पाया।  

स्वाध्याय करो, चिंतन में डूबो,  
सत्य का दीपक मन में जला लो।  
स्वधर्म निभाकर, कर्म करें पक्का,  
चदरिया को फिर से कर दो सच्चा।  

न कर क्रोध, न लालच पालो,  
मन को निर्मल, स्वच्छ कर डालो।  
प्रभु के द्वार जब जाना पड़ेगा,  
चदरिया शुद्ध ही साथ ले जाएगा।  

मैली चादर ओढ़ के कैसे,  
द्वार तुम्हारे प्रभु मैं आऊं।  
कबीर की सीख को अपनाओ जी,  
झीनी चदरिया को स्वच्छ बनाओ जी।  

उठो मानव, समय है थोड़ा,  
जीवन का मोल समझ लो थोड़ा।  
स्वधर्म, सत्य, प्रेम की राह पर,  
चदरिया चमकाओ, करो जीवन सार्थक।  

**विस्तार और व्याख्या**:  
यह कविता कबीर के दर्शन और रामचरितमानस की चौपाई "बड़े भाग मानुष तन पाया" से प्रेरित है। कबीर की चदरिया मानव जीवन का प्रतीक है, जो हमें ईश्वर ने शुद्ध और पवित्र रूप में दी है। कविता में यह बताया गया है कि हम स्वार्थ, लोभ, और सांसारिक मोह में पड़कर इस चदरिया को मैला कर देते हैं। आज के नेताओं, जैसे मोदी और ट्रंप, पर कटाक्ष करते हुए यह दर्शाया गया है कि वे सत्ता और स्वार्थ के पीछे भागते हैं, बिना यह सोचे कि जीवन का वास्तविक उद्देश्य क्या है। कविता प्रेरित करती है कि स्वाध्याय, चिंतन, और स्वधर्म के पालन से हम अपने जीवन को सार्थक बनाएं और चदरिया को शुद्ध रखें, ताकि प्रभु के द्वार पर गर्व से जा सकें।

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