संत वाणी (Sant Vani) दोहा:
फितरत बीज समान है, सीरत धरती जान।
सींचे जो प्रेम-जल से, तब हो जीवन महान।
अर्थ:
- फितरत (nature) बीज की तरह जन्मजात है — उसमें संभावनाएँ छिपी हैं।
- सीरत (character) धरती के समान है — जो बीज को पालती है, पोषित करती है।
- यदि इस बीज और धरती को प्रेम और तपस्या के जल से सींचा जाए,
तो जीवन महान और फलदायी बन जाता है।
भजन शीर्षक:
"फितरत बीज समान है"
(मुखड़ा - Refrain):
फितरत बीज समान है, सीरत धरती जान,
सींचे जो प्रेम-जल से, तब हो जीवन महान। (×2)
(अंतरा 1):
बीज में है छुपा हुआ, बगिया का आधार,
धरती की गोदी मिले, फूटे नव संचार।
सच्ची करम की वर्षा हो, श्रद्धा हो वरदान,
सींचे जो प्रेम-जल से, तब हो जीवन महान।
(अंतरा 2):
स्वभाव से बहती धारा, रूप ले जब सांचे,
सीरत के सुंदर उपवन में, फूलें सत्य के कांधे।
संयम, सेवा, साधना बन, हों जीवन के प्राण,
सींचे जो प्रेम-जल से, तब हो जीवन महान।
(मुखड़ा दोहराएं):
फितरत बीज समान है, सीरत धरती जान,
सींचे जो प्रेम-जल से, तब हो जीवन महान।
बहुत सुंदर निर्णय!
आपका भाव देखकर आनंद आ रहा है।
अब मैं पूरे भजन —
"फितरत बीज समान है" — को
राग भैरव आधारित सुर-संयोजन (notation) में प्रस्तुत कर रहा हूँ:
(मुखड़ा + दोनों अंतरे)
भजन: "फितरत बीज समान है" (पूरा सुर संयोजन - Raag Bhairav)
मुखड़ा (Refrain):
"फितरत बीज समान है,"
सा — रे♭ — ग — ग — म
"सीरत धरती जान,"
ग — म — प — ध♭ — प
"सींचे जो प्रेम-जल से,"
ग — म — प — ध♭ — नि — प
"तब हो जीवन महान।"
प — ध♭ — नि — सां — नि — ध♭ — प
(मुखड़ा को भाव से थोड़ा दोहराएँ, फिर अंतरा में जाएँ।)
अंतरा 1:
"बीज में है छुपा हुआ,"
ग — म — प — ध♭ — म
"बगिया का आधार,"
ग — म — प — ध♭ — प
"धरती की गोदी मिले,"
प — ध♭ — नि — ध♭ — प
"फूटे नव संचार।"
ग — म — प — ग — म
"सच्ची करम की वर्षा हो,"
सा — रे♭ — ग — म — प
"श्रद्धा हो वरदान,"
ग — म — प — ध♭ — प
"सींचे जो प्रेम-जल से,"
ग — म — प — ध♭ — नि — प
"तब हो जीवन महान।"
प — ध♭ — नि — सां — नि — ध♭ — प
(फिर मुखड़ा को भाव से दोहराएँ।)
अंतरा 2:
"स्वभाव से बहती धारा,"
ग — म — प — ध♭ — म
"रूप ले जब सांचे,"
ग — म — प — ध♭ — प
"सीरत के सुंदर उपवन में,"
प — ध♭ — नि — ध♭ — प — म — प
"फूलें सत्य के कांधे।"
ग — म — प — ग — म
"संयम, सेवा, साधना बन,"
सा — रे♭ — ग — म — प
"हों जीवन के प्राण,"
ग — म — प — ध♭ — प
"सींचे जो प्रेम-जल से,"
ग — म — प — ध♭ — नि — प
"तब हो जीवन महान।"
प — ध♭ — नि — सां — नि — ध♭ — प
(अंत में मुखड़ा को एक बार धीमे सुर में विस्तार से दोहराकर भजन समाप्त करें।)
"सीरत" (Character) और "फितरत" (Nature/Innate Tendency) के बीच के अंतर और उनके संवाद पर, भावनात्मक और गीतात्मक शैली में:
कविता शीर्षक:
"सीरत और फितरत का मिलन"
सीरत बोली फितरत से इक दिन,
"क्यों बदलती है तू हर पल के संग?"
फितरत हँस दी बहती हवा सी,
बोली — "मैं तो धड़कन हूँ, तू है जीवन की कथा सी।"
मैं तो जन्म से संग आई हूँ,
तेरे रंगों में भी रंग लाई हूँ,
तेरे आदर्शों के सपनों में,
तेरे स्वभाव की पगडंडियों में।
सीरत ने गहरी सांस ली और कहा —
"सच है, तू है मूल मेरा,
पर मैंने स्वयं को तराशा है, हर चोट, हर पीड़ा से गुज़रकर।
मैंने तुझे मोड़ा है प्रेम में,
मैंने तुझे साधा है संयम में।"
फितरत मुस्कुराई बादल बनकर,
"साधना भी मुझी से संभव है,
बिखरना भी मुझी से संभव है,
मैं आधार हूँ तेरे प्रयास का,
और तू प्रतिफल है मेरे विस्तार का।"
तब दोनों ने मिलकर गीत गाया —
"ना सीरत बिना फितरत टिकती,
ना फितरत बिना सीरत महकती।
जैसे मिट्टी और बीज का मेल,
वैसे जीवन में स्वर और खेल।"
Here’s a simple English explanation of the Hindi poem "सीरत और फितरत का मिलन" ("The Union of Character and Nature"),
keeping the deep, Sant Vani (mystic) spirit alive:
Explanation in English:
The poem presents a conversation between Seerat (Character) and Fitrat (Innate Nature).
It explores how a person's natural tendencies and their refined character are deeply connected — yet distinct.
-
Seerat (character) asks Fitrat (nature):
"Why do you keep changing with every passing moment?" -
Fitrat (nature) replies with a light, flowing laugh, like the wind:
"I am your heartbeat; I am the raw material that came with you at birth.
I color your dreams, I shape your inclinations."
Fitrat claims that she is spontaneous, wild, and untamed, while Seerat responds with depth:
"True, you are my foundation, but I have shaped myself —
through effort, suffering, and conscious choices."
-
Seerat says she has refined and disciplined her nature through love and patience.
-
Fitrat smiles again, acknowledging:
"Even your discipline and refinement arise from me!
Without me — without raw material — you would have nothing to sculpt."
In the end, both Seerat and Fitrat sing together:
"Without character, nature remains wild and aimless;
Without nature, character has no life force or beauty.
Like soil and seed, together they create the music and play of life."
Core Meaning:
- Fitrat is our instinctive self — raw, spontaneous, natural.
- Seerat is our crafted self — disciplined, moral, and conscious.
- Both are necessary: Nature gives energy and originality; Character gives form and direction.
This reflects the Sant Vani truth:
"Prakriti (nature) is the ground; Sanskar (refinement) is the flowering."
True beauty is when the wild energy of nature is lovingly shaped by the soul’s awareness.
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