यह रहा एक खूबसूरत, भावनापूर्ण और विचारोत्तेजक Blogger Post,
जो नियति, नीयत, सीरत, और फितरत — चारों अवधारणाओं को गहराई से जोड़ते हुए लिखा गया है:
"जीवन का चार अक्षरों वाला रहस्य: नियति, नीयत, सीरत और फितरत"
प्रस्तावना:
मनुष्य के जीवन का असली रहस्य अक्सर शब्दों में नहीं,
बल्कि उसके स्वभाव, विचार और कर्मों की अंतर्धारा में छुपा होता है।
जब हम गहराई से देखते हैं, तो पाते हैं कि चार शब्द —
नियति, नीयत, सीरत, और फितरत —
हमारे सम्पूर्ण जीवन की गाथा गढ़ते हैं।
1. नियति — जो लिखा है, वही होगा?
नियति यानी Destiny।
कई लोग मानते हैं कि जीवन पूर्व-निर्धारित है।
लेकिन संत वाणी में बार-बार कहा गया है —
"नियति वही है जो नीयत से बदल सकती है।"
हमारे वर्तमान कर्म और आंतरिक परिवर्तन भी नियति की धारा को मोड़ सकते हैं।
नियति एक बीज जैसा है — वह क्या बनेगा, यह बहुत हद तक इस बात पर निर्भर करता है कि हम उसे कैसे सींचते हैं।
2. नीयत — अंदर की सच्चाई
नीयत यानी Intention।
नीयत वह दीपक है, जिसकी लौ हमारे सभी कर्मों को रोशनी देती है।
अगर नीयत शुद्ध है, तो संकरे रास्ते भी चौड़े हो जाते हैं।
अगर नीयत मैली है, तो राजमार्ग भी अंधकारमय लगते हैं।
संत कबीर ने कहा था:
"नीयत नीकी राखिए, चाहो सुख संसार।"
यानी नियत को साफ रखो — सुख अपने आप चले आएगा।
3. सीरत — भीतर की सुंदरता
सीरत यानी Character।
जहाँ नीयत मन की गहराई में है, वहीं सीरत उसके बाहरी रूप की अभिव्यक्ति है।
सीरत वह बगिया है जो भीतर की भावनाओं से सींची जाती है।
अच्छी सीरत वाले लोग, काँटों भरे जीवन में भी फूल खिला लेते हैं।
जैसे चंदन हर प्रकार की मिट्टी में महकता है, वैसे ही अच्छी सीरत हर परिस्थिति में सम्मान कमाती है।
4. फितरत — स्वभाव का बीज
फितरत यानी Innate Nature।
यह हमारे जन्म से हमारे भीतर पड़ी वह बीज-शक्ति है, जो समय के साथ आकार लेती है।
फितरत बदल सकती है, मगर वह गहन साधना मांगती है।
जैसे बीज में वृक्ष का व्रत छुपा होता है, वैसे ही फितरत में हमारे कर्मों का वृत्तांत बसा है।
अगर फितरत को सही खाद-पानी (ज्ञान, प्रेम और तपस्या) मिले, तो वह विशाल वटवृक्ष बन सकती है।
नियति, नीयत, सीरत और फितरत का सम्मिलन
- नीयत को सुधारिए —
ताकि आपकी फितरत पर प्रेम और सच्चाई की खाद पड़े। - सीरत को संवारिए —
ताकि दूसरों के जीवन में सुगंध फैले। - तब नियति स्वयं अपना मार्ग मोड़ लेगी और आपके लिए नए आकाश खोलेगी।
जीवन कोई पूर्वनिर्धारित कारागार नहीं है,
बल्कि एक जीवंत चित्र है,
जिसे हम हर दिन अपनी सोच, भाव और कर्म से रंगते हैं।
छोटा दोहा (Sant Vani शैली में):
नीयत निर्मल करि ले, सीरत सुधरे निसि।
फितरत फूले प्रेम से, बदले जीवन दिशि।
(नीयत को शुद्ध कर लो, सीरत भी सुधर जाएगी;
फितरत में प्रेम का फूल खिलेगा और जीवन की दिशा बदल जाएगी।)
समापन:
जीवन के इन चार स्तम्भों —
नीयत, फितरत, सीरत, और नियति —
पर ध्यान देकर हम अपने भीतर के महापुरुष को जगा सकते हैं।
बाहर की दुनिया तब स्वतः ही सुंदर हो जाएगी,
जब भीतर का दीपक जल उठेगा।
तो आइए, अपनी नियत को निखारें, सीरत को संवारें, फितरत को सँजोएं —
और अपनी नियति को स्वर्णिम बनाएं।
[End of Blogger Post]
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