Friday, August 1, 2025

मार्गदर्शक त्रिवेणी: पंचशील, तुलसी वाणी और गांधी दर्शन में नैतिक निर्माण

 


मार्गदर्शक त्रिवेणी: पंचशील, तुलसी वाणी और गांधी दर्शन में नैतिक निर्माण

"जिस राष्ट्र का युवक वर्ग मर्यादा, विवेक, नम्रता और सहिष्णुता का त्याग करता है, वह राष्ट्र नष्ट हो जाता है।"
— महात्मा गांधी, 5 दिसंबर 1926

भारतीय सांस्कृतिक चेतना की तीन महान धाराएँ — भगवान बुद्ध के पंचशील, गोस्वामी तुलसीदास की भक्ति वाणी, और महात्मा गांधी का सत्याग्रही चिंतन — एक ही मूल आत्मा की त्रिवेणी हैं। ये तीनों ही व्यक्ति निर्माण और राष्ट्र निर्माण के मूल स्तम्भ हैं।


१. पंचशील: बुद्ध का नैतिक अनुशासन

पंचशील बौद्ध धर्म में पांच मुख्य नैतिक संकल्प हैं, जो सामाजिक और आत्मिक शुद्धि की नींव हैं:

  1. प्राणि हिंसा से विरत रहना
  2. चोरी न करना
  3. कुशीलाचरण से दूर रहना (काम वासना पर संयम)
  4. झूठ न बोलना
  5. मदिरा व मादक पदार्थों से दूर रहना

ये केवल व्यक्तिगत नैतिकताएं नहीं हैं, बल्कि सामाजिक सौहार्द, विवेक और करुणा का आधार भी हैं। गांधीजी की अहिंसा, सत्य, और सत्यनिष्ठ सेवा का सीधा संबंध इन्हीं पंचशील से जुड़ता है।


२. गोस्वामी तुलसीदास: श्रद्धा और विवेक का संतुलन

"भवानीशङ्करौ वन्दे श्रद्धाविश्वासरूपिणौ। याभ्यां विना न पश्यन्ति सिद्धाः स्वान्तःस्थमीश्वरम्।।"
— तुलसीदास (रामचरितमानस प्रस्तावना)

तुलसीदास के दो स्तंभ हैं:

  • श्रद्धा (भावात्मक विश्वास)
  • विवेक (तर्कपूर्ण बोध)

उनकी वाणी व्यक्ति को अंधविश्वास नहीं, बल्कि आत्म-ज्ञान और गुरु-कृपा से जीवन के अंधकार को हरने का आह्वान करती है:

"बंदउ गुरु पद कंज कृपा सिंधु नररूप हरि।
महामोह तम पुंज जासु बचन रवि कर निकर।।"

यह 'विवेक का सूर्य' वही है जिसे गांधी जी युवाओं में देखना चाहते हैं — अंधकार से प्रकाश की ओर यात्रा


३. महात्मा गांधी का युवा आह्वान (५ दिसंबर १९२६)

गांधीजी कहते हैं कि राष्ट्र निर्माण का भार युवाओं पर है — यदि वे मर्यादा, विवेक, नम्रता और सहिष्णुता छोड़ देंगे, तो राष्ट्र का पतन निश्चित है।

उनका आग्रह:

"अपनी प्राचीन सभ्यता को नहीं छोड़ना, विवेक का त्याग न करना, ग़रीबों के प्रति प्रेम भाव को न छोड़ना।"

यह आह्वान पूरी तरह बुद्ध के पंचशील और तुलसी के विवेक-संपन्न भक्ति भाव से मेल खाता है।


सामूहिक संदेश: आधुनिक भारत के लिए संकल्प

सिद्धांत बुद्ध (पंचशील) तुलसीदास गांधीजी
अहिंसा प्राणि हिंसा वर्जित करुणा-भाव सत्य-अहिंसा
विवेक झूठ से विरति श्रद्धा-विवेक संतुलन विवेक का आग्रह
संयम काम, मद्य, चोरी से संयम गुरु-आधारित आत्म-नियंत्रण युवाओं में मर्यादा
सामाजिक जिम्मेदारी सभी प्राणी समभाव लोकमंगल की साधना राष्ट्रनिर्माण में युवा

उपसंहार: नई पीढ़ी से संवाद

आज जब आधुनिकता की चमक में हमारी प्राचीन नैतिक जड़ें डगमगाने लगती हैं, यह त्रयी हमें फिर से स्मरण कराती है कि विकास का मार्ग केवल तकनीकी नहीं, नैतिक भी होना चाहिए

“नौजवानों, विवेक का त्याग न करना, ग़रीबों के प्रति प्रेम न छोड़ना।”
— महात्मा गांधी


लेखक: अक्षत अग्रवाल
ब्लॉग श्रेणी: राष्ट्र निर्माण | आध्यात्मिक नीति | युवा प्रेरणा



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