Tuesday, July 15, 2025

एक प्रवासी भारतीय की आत्मकथा

 

✍️ Blogger Post Title: “प्रवासी राम की कथा: मेरी रामायण — अमेरिका, अरब और अंत में रामराज्य की तलाश”
लेखक: एक भारतीय प्रवासी, जिसकी आंखों से लिखा गया आधुनिक युग का रामायण


🔖 प्रस्तावना

"भव सागर चाह पार जो जावा, ता कर राम कथा यह दृढ़ नावा।"
यदि जीवन रूपी संसार-सागर को पार करना है, तो रामकथा ही वह दृढ़ नाव है जो हमें पार ले जा सकती है।

यह कोई पौराणिक आख्यान नहीं, बल्कि मेरी अपनी जीवन-यात्रा की रामायण है — एक भारतीय प्रवासी की, जो रामराज्य की खोज में अरब की रेत और अमरीका की बर्फ़ीली सड़कों से होकर गुज़रा।


📜 अध्याय 1: अमरीका और अरब – भटकता भरत

"अमरीका हमने देखा, अरब स्थान हमने देखा।
तुमसा गरीब हमने इंसान कभी न देखा।
वो बोले गरीब इंडियन, यहां सभ्यता से रहना पड़ेगा!
तमीज से बात करनी होगी।
कोई भेद भाव बर्दाश्त न होगा।
बच्चों की भी सुननी होगी।
मैं तो सुधर गया प्रभु।"

जब पहली बार खाड़ी देशों की ज़मीन पर उतरा, और फिर कनाडा की “सभ्य” धरती पर कदम रखा — तो समझ आया, यहाँ का संघर्ष सिर्फ पेट और पैसा का नहीं, संस्कारों और पहचान का है
मुझे बताया गया, "यहाँ तमीज़ से बात करनी होगी", लेकिन अपनी पहचान, अपनी भाषा, अपने विश्वास की तमीज़ को कोई समझने वाला न था।


📜 अध्याय 2: तमीज़ और अंग्रेज़ी – मार खा के सीखा

"प्रभु, बहुत मार मार के पढ़ाओ हो,
कौन से पाप किए हमने।
मार मार के अंग्रेजी सिखाओ,
मार मार के तमीज सिखायो,
मार मार के सभ्य कैनेडियन बनायो।
पाहि पाहि संकट हरण, शरण सुखद रघुवीर। 🙏🙏"

हम प्रवासी नए रावणों की लंका में नौकरी करते हैं, लेकिन वहाँ न सीता है, न राम, बस KPI और performance rating है।
प्रभु, हम तो तुमसे ही फरियाद करते हैं — जो संकटमोचन कहलाए, वही अब हमारी पहचान बचा पाए।


📜 अध्याय 3: पहचान का रावण — मेरी वासना, मेरा अभिमान

"समझ गया प्रभु,
अपनी वासना, तड़प, कमजोरी और सीना जोरी।
पनौती की तरह ही कुछ कुछ।
'मूर्ख तुझे अतिशय अभिमाना, मोर कहा कबहूँ न माना।'
प्रभु, अजहूं मै पापी, अंत काल गति तोर।"

सपने में जो श्रीराम थे, हकीकत में रावण बन बैठा — पैसे, पद और प्रतिष्ठा की लंका बनाता रहा।
लेकिन अब समझ आया कि असली रामराज्य बाहर नहीं, भीतर है। बुढ़ापे की दहलीज पर खड़ा होकर कहता हूं — "अब मैं तेरी शरण आया हूं प्रभु।"


📜 अध्याय 4: चुन ले हे प्राणी, किसकी मृत्यु चाहिए?

"चुन ले हे प्राणी,
मरना चहसि बाली 56" की तरह,
पैसे शोहरत के लिए तड़प तड़प कर रावण की तरह,
या जीना चहसि सुग्रीव (व्रत धारी) की तरह,
हनुमान सेवक की तरह।"

अब समय आ गया है कि हम अपने भीतर झांके —
क्या हम बाली की तरह छलपूर्वक लड़ते हुए अंत पाना चाहते हैं?
या रावण की तरह ज्ञान और शक्ति के बावजूद पतन?

या फिर हनुमान की तरह सेवा, शक्ति और समर्पण से भरा जीवन जीना चाहते हैं?


📜 अध्याय 5: मुख की भक्ति, हृदय का रावण

"मोरी भक्ति मुख पे, रावण सन प्रीती!
शठ मिल जाहू तिनन्हि कह नीति।
(विषमता रहित) राम राज्य भावै न कोई,
सत्यवादी कहुं मारही गोली।
लंका का राज तोहे चाही, अधम, दुर्गति, पनौती विमोही।"

हमें रामराज्य तो चाहिए, लेकिन सच्चाई, समता और सेवा नहीं
हम चाहते हैं टेक्स-फ्री स्वर्ग, लेकिन राम के आदर्शों को अपनाने से डरते हैं।

जहाँ रामराज्य की बात करने पर लोग हँसते हैं, वहीं झूठ और कपट की लंका में लोग राज करते हैं।
क्या यही हमारे जीवन का उद्देश्य है?


📜 उपसंहार: गांधी के रामराज्य की ओर

"नर विविध कर्म, अधर्म बहुविधि शोकप्रद सब त्यागहु,
विश्वास कर राम कथा,
गांधी सत्याग्रह में,
राम राज्य, पंचायतीराज, सुराज अनुरागहु।"

अब समय आ गया है कि हम गांधी के सत्य, राम के त्याग, और हनुमान के सेवा भाव को अपने जीवन में फिर से जगा सकें।
रामराज्य कोई मिथक नहीं है — यह एक आत्मिक व्यवस्था है, जहाँ सत्य, करुणा और समानता हो।

हम भारतीय प्रवासी, जिनके भीतर राम और रावण दोनों हैं, हमें निर्णय करना है —
हम किसकी कथा जीना चाहते हैं?


🌸 जय श्रीराम। जय प्रवासी राम। 🌸

~ आपकी अपनी रामायण: एक कर्मशील प्रवासी की आत्मकथा


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