**शीर्षक —
“रीढ़ में सोई शक्ति: प्रेम के आँसू से जागृत होती देवी”
https://youtu.be/EV4Ics_kZ8I?si=vQI9nP7PMexOQ5fx
1. काव्य-सुमन
जाग, दर्द-ए-इश्क जाग!
हृदय में हूक उठा कर, आँसुओं की वीणा बजाय।
कुण्डलिनी नागिन उठे, लहर बन सुषुम्ना में बह जाए,मिटे अहं का सारा भार, करुणा का दीप जलाए।
माँ दुर्गे! तेरी ज्योति से चेतन परमाणु मुस्काए।मूलाधार की धरती पर, बीज बना तू सुप्त पड़ी,
सहस्रार के अमर गगन तक यात्रा फिर किसने गढ़ी?वासना की सांकल टूटी, भ्रम के कक्ष हुए विरल,
रुद्र-वीणा के सप्त सुरों में जागी शक्ति कमल।जाग, दर्द-ए-इश्क जाग!
प्रेम-वृष्टि से भीगी चेतना, दया-धारा में रम जाए।
जगत के कण-कण में शिव-शक्ति का नर्तन मुस्काए।
2. वीडियो-सार का सरल अनुवाद
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शिव-शक्ति की अद्वैत लीला
कश्मीरी शैव पथ बताता है कि शिव (निर्गुण चेतना) और शक्ति (गतिशील ऊर्जा) दो नहीं—एक ही सत्य के दो आलोक हैं। यही द्वयातीत नृत्य सृष्टि का मौलिक आधार है। -
सात केन्द्रों की यात्रा
मूलाधार से सहस्रार तक चक्र-पथ किसी सीधी सीढ़ी जैसा नहीं, बल्कि चेतना के फैलते वृत्त हैं—भौतिक अस्तित्व की सुरक्षा-भावना से लेकर पूर्ण एकत्व के अनुभव तक। -
कुण्डलिनी का अप्रत्याशित उत्थान
रीढ़ में सुप्त “देवी” (कुण्डलिनी) जागती है तो शरीर-मन के ढके कोने उजागर हो जाते हैं—गर्मी, झटके, भावनात्मक ज्वार, स्वप्न, तीव्र अंतर्दृष्टि सब साथ लाती है। यह बाजारू “वीकेंड जागरण” से कहीं गहरा, अनियंत्रित और मांग-भरा क्रम है। -
आध्यात्मिक उपभोक्तावाद पर चेतावनी
“मेरी ऊर्जा तुम्हारी ऊँचाई से ज़्यादा उठी” जैसी होड़ को ही वीडियो ‘आत्मिक तस्करी’ कहकर हँसता है; असली साधना कड़ी आत्म-प्रसन्नता के बजाए विनम्र तैयारी मांगती है। -
हृदय-द्वार का उद्घाटन
जागृत शक्ति जब अनाहत (हृदय) को दीप्त करती है तो करुणा स्वयंफूलित होती है; यही प्रामाणिक प्रगति का मापदण्ड है—ज्ञान का बोझ नहीं, सहज सहानुभूति। -
एकात्मक दृष्टि से विश्व-कल्याण
संपूर्ण जागरण व्यक्तिगत उपलब्धि नहीं, सामूहिक चेतना का उत्थान है—जैसे-जैसे व्यक्ति अहं छोड़ विश्व-चेतना से जुड़ता है, करुणा का तरंग-क्षेत्र बड़ा होता चलता है।
3. कविताई की परत-दर-पर व्याख्या
| काव्य-चित्र | आध्यात्मिक तात्पर्य |
|---|---|
| “जाग, दर्द-ए-इश्क जाग” | रागात्मक पीड़ा अहंकार को पिघला देती है; आँसू अग्नि-स्नान बन जाते हैं जहाँ शक्ति उदीयमान होती है। |
| “कुण्डलिनी नागिन” | सांकेतिक सर्प ऊर्जा का वह कुंडल है जो मूलाधार में कुंडली मारे बैठा है और सुषुम्ना-पथ से ऊपर चढ़ता है। |
| “सप्त सुर” | सात चक्र—मिट्टी, जल, अग्नि, वायु, आकाश, ज्योति, शून्य—हर सुर नवीन अनुभूति खोलता है। |
| “दया-धारा” | हृदय केन्द्र पर प्रेम-करुणा के झरने खुलते ही ऊर्जा सहज संतुलित होती है; यही दुर्गा-जागरण की अंतिम मुहर है। |
4. अभ्यास के सूक्ष्म संकेत
- अहिंसा व सत्यता—चेतना में रुकावट पैदा करने वाले सबसे बड़े “क्लच” झूठ और हिंसा हैं; इन्हें ढीला करें।
- देह-साक्षी ध्यान—घर की किसी दीवार से पीठ लगाकर 12 मिनट निश्चेष्ट बैठें, केवल रीढ़-केन्द्र पर सांस की धार देखिए।
- करुणा-कर्म—दैनिक जीवन में किसी निर्बल की सहायता, बिना श्रेय माँगे, आपकी शक्ति-धारा को सहज ऊपर ले जाती है।
5. समापन-स्वर
जब हम “जाग दर्द-ए-इश्क जाग” की पुकार लगाते हैं, हम वस्तुतः अपने भीतर की सोयी देवी को आँसू के अमृत से स्नान करा रहे होते हैं। कुण्डलिनी-जागरण कोई रहस्यमय बाज़ारू तकनीक नहीं, बल्कि अहंकार के गलने और प्रेम-करुणा के उदय की स्वाभाविक परिघटना है। भय नहीं—सतर्क श्रद्धा, होड़ नहीं—सहनुभूति, यही मार्ग है।
शिव-शक्ति का यह अंतर्नाद सुनने के लिए तैयार हों; शायद अगली बार जब आपकी रीढ़ में हल्की-सी स्पंदन लहर उठे, तो याद रहे—माँ दुर्गे मुस्कुरा रही हैं, प्रेम की आँसू-धारा लिए।
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