"मोह बंधन और क्षणभंगुर जीवन: जब प्रेम और चेतना का टेक-ऑफ क्रैश में बदल जाए"
"तड़प ये कैसी, तृष्णा पिछले जनम की, महा प्रबल — इसको मोह बंधन कहते हैं।
इसको सहज भाव से भोग के मुक्त हो जाओ, मानसिक रूप से।
शारीरिक रूप से हुए तो फिर फंसे।"
"कब जाने ये मन टेक-ऑफ कर जाए —
और जीवन का प्लेन क्रैश की तरह अचानक ढह जाए।
रूह झुलसी, अकेली, विस्मित खड़ी रह जाए —
'ये क्या हुआ? कब हुआ? कैसे हुआ?
अभी तो हम लंदन जा रहे थे, घर बसाने…'"
1. प्रेम या पुनर्जन्म की स्मृति?
भारतीय दर्शन में जब भी कोई संबंध अत्यधिक तीव्र, अकस्मात आकर्षक, या आत्मिक तड़प से भरा होता है, तो उसे केवल वर्तमान जन्म की घटना मानना भूल है। यह उस अधूरी कहानी का परिणाम होता है जो आत्मा पिछले जन्म में लिख नहीं पाई।
"प्रत्यभिज्ञानात् पूर्वस्मृतिरेव।"
— योग वशिष्ठ
(“पहचान की भावना, स्मृति की पुनरावृत्ति ही है।”)
2. मोह बंधन और मानसिक मुक्ति
जब यह तृष्णा केवल मानसिक स्तर पर रह जाए — स्वीकृति, साक्षी भाव और समर्पण के साथ — तो आत्मा उसे भोगकर मुक्त हो सकती है।
पर जब यह भोग शारीरिक बंधन में बदलता है, तो नए कर्म ऋण, ग्रहण, और भटकाव की शुरुआत होती है।
"कामं क्रोधं लोभं मोहं त्यक्त्वात्मानं पश्यति सुधीः।"
— भगवद्गीता 5.29
3. क्षणभंगुर जीवन की चेतावनी
हम जीवन में प्रेम और योजना के साथ "टेक-ऑफ" करते हैं — विवाह, घर, विदेश यात्रा, भविष्य की आशाएं।
पर Mindfulness यही कहती है कि हर टेक-ऑफ का कोई भी क्षण अंतिम हो सकता है।
जीवन कभी भी प्लेन क्रैश में बदल सकता है।
और अगर मन उस क्षण में होश में न हो, तो आत्मा रूह की तरह झुलसी हुई, भूत बनकर अटकी रह जाती है।
"सभी संयोग अंत में वियोग हैं।" — बुद्ध
"अवधान ही जीवित होने का प्रमाण है। अनवधान तो चलती-फिरती मृत्यु है।" — ओशो
4. Mindful आत्मा का प्रेम
Mindful आत्मा जानती है कि प्रेम एक विसर्जन है, अधिकार नहीं।
वह मोह को देखती है, समझती है, स्वीकार करती है —
लेकिन उससे बांधती नहीं है, और बंधती नहीं है।
जब वह प्रेम में होती है, तो वह पूर्णता से वर्तमान में होती है,
और जब वह वियोग या मृत्यु का सामना करती है,
तो वह पूछती नहीं — "ये क्या हुआ?",
बल्कि कहती है — "जो होना था, वह हुआ। मैं होश में थी।"
5. निष्कर्ष: बंधन या मुक्त उड़ान?
- मोह से जन्मता है भूतकाल में अटका मन।
- तृष्णा से जन्मता है अधूरी इच्छा में उलझा भविष्य।
- और Mindfulness से जन्मती है वर्तमान में जीती हुई आत्मा,
जो टेक-ऑफ भी होश से करती है,
और क्रैश में भी मुस्कुराते हुए उतरती है।
"जीवन की विडंबना यह नहीं कि हम मरते हैं —
विडंबना यह है कि हम जीते नहीं।"
— अज्ञात
🔖 Sources / संदर्भ:
- Dhammapada, Verses 213–216, 277–279
- Bhagavad Gita, Chapter 5, Verse 29
- Yoga Vashistha, Nirvana Prakarana
- Shvetashvatara Upanishad 4.10
- Osho, The Book of Secrets
- Thich Nhat Hanh, The Miracle of Mindfulness
- S.N. Goenka, Vipassana – The Art of Living
- Dr. Radhakrishnan, Indian Philosophy Vol I
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