शीर्षक:
ज़हर की पहचान: कविता के माध्यम से भारत के भविष्य की पड़ताल
प्रस्तावना:
आज जब हम एक बदलते भारत की बात करते हैं, तो यह बदलाव सिर्फ तकनीक, आर्थिक विकास या वैश्विक स्थिति तक सीमित नहीं है। यह बदलाव सामाजिक चेतना, मानसिकता और हमारी परस्पर सोच में भी हो रहा है। ऐसे समय में एक कविता — "ज़हर की पहचान" — हमें आत्ममंथन के लिए आमंत्रित करती है। यह सिर्फ शब्दों का संकलन नहीं, बल्कि एक चेतावनी है, एक दर्पण है जिसमें आज का भारत स्वयं को देख सकता है।
कविता का सार:
यह कविता तीन प्रकार के ‘ज़हर’ की बात करती है:
- उन्माद का ज़हर – भीड़ का पागलपन, जो तर्क नहीं सुनता।
- धर्म के नाम का ज़हर – जो आस्था को हिंसा में बदल देता है।
- राष्ट्रभक्ति का ज़हर – जो अंधभक्ति बनकर आलोचना को देशद्रोह कह देता है।
कवि ने इन्हें केवल प्रतीकों के रूप में नहीं, बल्कि समाज में घुले ज़हर के रूप में देखा है, जो व्यक्ति को पहचानना भूल जाता है — इंसान, धर्म, देश सब उसके सामने मिट जाते हैं।
वर्तमान भारत का यथार्थ:
आज का भारत तकनीकी रूप से सक्षम, युवा ऊर्जा से भरपूर और वैश्विक मंच पर प्रभावशाली है। लेकिन साथ ही साथ, समाज के भीतर एक अदृश्य दरार भी चौड़ी हो रही है:
- धार्मिक ध्रुवीकरण: सोशल मीडिया और राजनीतिक विमर्श में धार्मिक आधार पर विभाजन गहरा होता जा रहा है।
- अंध राष्ट्रवाद: जहां तटस्थ आलोचना को राष्ट्रद्रोह का तमगा दे दिया जाता है।
- भीड़ का उन्माद: मॉब लिंचिंग, अफवाहों पर आधारित हिंसा, और सामाजिक बहिष्कार आम होते जा रहे हैं।
कविता इन प्रवृत्तियों को “ज़हर” के रूप में पहचानती है — एक ऐसा ज़हर जो धीमे-धीमे हमारे ताने-बाने को नष्ट कर रहा है।
भविष्य की राह:
यदि यह ज़हर यूं ही फैलता रहा, तो भविष्य का भारत एक विभाजित, असहिष्णु और आत्म-केन्द्रित समाज बन जाएगा, जहाँ रचनात्मक विचारों की जगह नफरत, डर और चुप्पी ले लेगी।
लेकिन रास्ता अभी भी खुला है:
- संवाद और सहिष्णुता को बढ़ावा देना होगा।
- शिक्षा और आलोचनात्मक सोच को समर्थन देना होगा।
- धर्म, राष्ट्र और विचारधारा से ऊपर मानवता को स्थान देना होगा।
निष्कर्ष:
"ज़हर की पहचान" एक चेतावनी है, लेकिन साथ ही एक अवसर भी — सोच बदलने का, समाज बदलने का। यह कविता हमें बताती है कि राष्ट्रभक्ति अगर प्रेम से ना जुड़ी हो, और धर्म अगर करुणा से ना उपजे — तो वो ज़हर बन जाते हैं।
हमें एक ऐसा भारत बनाना है जो बहस से डरे नहीं, बल्कि विचारों की विविधता को अपनाए। जहाँ धर्म जोड़ने का माध्यम हो, तोड़ने का नहीं। और जहाँ राष्ट्रभक्ति का मतलब सत्ता से प्रेम नहीं, बल्कि जनता से जुड़ाव हो।
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