Title: दिनभर की धक्कमधक्की और असली साधना का अभाव
"दिनभर पेलम पेला, धक्कम धक्का, खींचा तानी, क्लेश विकार!
कहे नानक साह, ये तो सुमिरन, भजन, मनन चिंतन, ध्यान रियाज, प्रैक्टिस समर्पण, नाहीं।"
जब दिन की शुरुआत होती है, हम मशीन की तरह दौड़ने लगते हैं — ऑफिस की भागदौड़, घरेलू जिम्मेदारियाँ, सोशल मीडिया की खींचतान, और आत्म-प्रदर्शन की होड़। हर दिन 'पेलम पेला' में बीतता है — जैसे किसी अदृश्य रेस में शामिल हों, जहां न कोई शुरुआत स्पष्ट है, न कोई मंज़िल।
गुरुवाणी हमें झकझोरती है।
यह कहती है — "ये जो तुम कर रहे हो, ये साधना नहीं है। ये भजन नहीं, न मनन है। ये तो क्लेश, खींचतान और भ्रम है।"
सच्ची साधना का अर्थ केवल मंदिर, मस्जिद या गुरुद्वारे जाना नहीं, बल्कि हर सांस के साथ जागरूक होना है।
सुमिरन का अर्थ है — पल भर को रुक कर अपने भीतर की आवाज़ सुनना।
भजन केवल गीत नहीं, बल्कि आत्मा की पुकार है।
मनन और चिंतन का मतलब है — अपने कर्मों और विचारों को प्रश्नों की अग्नि में तपाना।
ध्यान कोई "फैंसी" ट्रेंड नहीं, बल्कि आत्म-स्वरूप में लौटने की क्रिया है।
रियाज़ और प्रैक्टिस केवल कलाकारों का काम नहीं, हर इंसान की जरूरत है — एक बेहतर मनुष्य बनने के लिए।
समर्पण — सबसे कठिन, लेकिन सबसे आवश्यक। अपने अहंकार को उस 'कुछ बडे' के आगे समर्पित करना।
आज जब हम 'व्यस्त' होने को 'उपलब्धि' समझ बैठे हैं, गुरुवाणी हमें याद दिलाती है कि
"ध्यान के बिना जीवन केवल प्रतिक्रियाओं का कोलाहल है।"
बाहर से सब कुछ भले सजीव लगे, भीतर सब शून्य होता जा रहा है।
तो क्या करें?
- हर दिन 10 मिनट के लिए अपने भीतर उतरें।
- सांस की गति पर ध्यान दें।
- पूछें — "मैं किसके लिए इतना दौड़ रहा हूं?"
- एक भजन, एक श्लोक, एक मौन क्षण… और दिन का अनुभव बदलने लगेगा।
गुरु की वाणी कोई कविता नहीं, चेतना का संकेत है।
इस आवाज़ को सुनना शुरू करें — वहीं से जीवन की असली यात्रा शुरू होती है।
आपका साथी,
[आपका नाम]
— आत्म-चिंतन और साधना की राह पर एक पथिक
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