Wednesday, April 30, 2025

"Critical Thinking और Logical Reasoning की Importance: भारतीय शास्त्रों में क्या लिखा है और क्यों आज बुज़ुर्ग पीढ़ी प्रोपेगंडा का शिकार बन रही है?"


भूमिका:

क्या आपने कभी सोचा है कि हमारे प्राचीन शास्त्रों में तर्क, बुद्धि, और विवेक के बारे में क्या कहा गया है? क्या यह सत्य नहीं है कि भारतीय संस्कृति हमेशा से ज्ञान, तर्क और आत्मनिर्भरता को महत्व देती रही है? फिर भी, क्यों आजकल हमें बुज़ुर्ग पीढ़ी को वायरल हो रहे WhatsApp मैसेज और मीडिया प्रोपेगंडा का शिकार होते हुए देखना पड़ता है?

इस ब्लॉग पोस्ट में हम भारतीय शास्त्रों में तर्क (Critical Thinking) और बुद्धिमत्ता (Logical Reasoning) के महत्व पर चर्चा करेंगे और साथ ही यह जानने की कोशिश करेंगे कि क्यों आज की बुज़ुर्ग पीढ़ी इतनी आसानी से इस "गुमराह मीडिया" का शिकार हो रही है।


भारतीय शास्त्रों में Critical Thinking और Logical Reasoning:

भारतीय शास्त्रों में तर्क और विवेक का हमेशा महत्वपूर्ण स्थान रहा है। "न्यायशास्त्र" (Logic and Reasoning) में यह स्पष्ट रूप से बताया गया है कि किसी भी सत्य को समझने के लिए एक व्यक्ति को अपने मन और बुद्धि का उपयोग करना चाहिए। संख्य दर्शन और वैदिक तर्क शास्त्र में "सत्य" तक पहुँचने के लिए ज्ञान, विश्लेषण, और तर्क की आवश्यकता पर जोर दिया गया है।

  • न्याय दर्शन के अनुसार, किसी भी प्रकार के निर्णय या निष्कर्ष तक पहुँचने के लिए प्रमाण, तर्क, और विवेक का होना अत्यंत आवश्यक है।
  • "शंकराचार्य" ने "Neti, Neti" (यह नहीं, यह भी नहीं) का सिद्धांत दिया था, जो आत्मा की खोज के संदर्भ में था, लेकिन आज इसका अर्थ यह है कि हमें बाहरी और अंदरूनी दोनों स्तरों पर सही और गलत की पहचान करने के लिए तर्क का इस्तेमाल करना चाहिए।

बुज़ुर्ग पीढ़ी का क्यों हो रहा है शिकार?

अब सवाल यह उठता है कि, जिन शास्त्रों ने हमें तर्क और बुद्धि का मार्ग दिखाया, वही शास्त्र अब क्यों हमसे खोते जा रहे हैं? क्यों आज के समय में बुज़ुर्ग लोग आसानी से WhatsApp forwards और न्यूज़ चैनलों के प्रोपेगंडा का शिकार बन जाते हैं?

कुछ मुख्य कारण:

  1. श्रद्धा और विश्वास का बढ़ता दबाव
    भारतीय संस्कृति में हमेशा से यह सिखाया गया है कि बड़े लोगों की बातों को सम्मान देना चाहिए। यह एक अच्छा संस्कार हो सकता है, लेकिन कभी-कभी यह हमारी आलोचनात्मक सोच (Critical Thinking) को कुंद कर देता है।
    जब एक बुज़ुर्ग को किसी द्वारा भेजा गया व्हाट्सएप मैसेज या वायरल वीडियो देखने को मिलता है, तो उनका विश्वास उन संदेशों पर बढ़ जाता है, भले ही वह पूरी तरह से तथ्यात्मक ना हो।

  2. वायरल मीडिया का प्रभाव
    आजकल की मीडिया, खासकर न्यूज़ चैनल और सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म्स, तेजी से तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर पेश करते हैं। ख़बरों को सनसनीखेज तरीके से पेश करना अब एक सामान्य तरीका बन चुका है। जब यह संदेश व्हाट्सएप या फेसबुक पर वायरल होते हैं, तो बुज़ुर्ग लोग अक्सर बिना किसी प्रश्न के इन्हें स्वीकार कर लेते हैं।

  3. तकनीकी ज्ञान का अभाव
    बुज़ुर्ग पीढ़ी ने कभी इस प्रकार के मीडिया के साथ संपर्क नहीं किया था। उनके पास यह उपकरण नहीं थे कि वे सच्चाई और झूठ के बीच अंतर कर सकें।
    इसके कारण, जब किसी ने एक "Breaking News" या "Important Alert" भेजा, तो वे उसे बिना जांचे-परखे मान लेते हैं।

  4. भावनाओं का दबाव
    बुज़ुर्गों के लिए, यह अक्सर भावनात्मक जुड़ाव होता है। जब उन्हें कोई समाचार मिलता है जिसमें "देश की सुरक्षा खतरे में है" या "भारत में सोने की खदान मिली है", तो भावनात्मक रूप से वे उस समाचार को सही मान लेते हैं। तर्क और विश्लेषण की बजाय, भावना और आस्था अधिक प्रभावी होती है।


अंतिम विचार:

हमारे प्राचीन शास्त्रों में जो ज्ञान और तर्क का मार्ग दिखाया गया था, वह आज भी हमारे जीवन में अत्यंत महत्वपूर्ण है। यदि हम अपने बुज़ुर्गों को ये सिखा सकें कि कैसे मीडिया और व्हाट्सएप फॉरवर्ड्स को केवल भावनात्मक आधार पर नहीं, बल्कि विवेक और तर्क के आधार पर स्वीकार किया जाए, तो शायद हम उनकी सोच को थोड़ा और सशक्त बना सकते हैं।

हमारी जिम्मेदारी बनती है कि हम उन्हें समझाएं कि "जांचो, फिर विश्वास करो" और तर्क को अपने जीवन का हिस्सा बनाएं। यह केवल हमारे बुज़ुर्गों के लिए नहीं, बल्कि समाज के हर वर्ग के लिए आवश्यक है।

आखिरकार, "तर्क और बुद्धि से ही हम सत्य तक पहुँच सकते हैं!"


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