Friday, August 18, 2017

महाभारत: अर्जुन यानी अनुराग

गीता का एक भी श्लोक बाह्य मार काट का समर्थन नही करता।

न ही जिसे आजकल धार्मिक विधान कहा जाता है, यथा पूजा पाठ, कथा, अनुष्ठान (गणेश विसर्जन, दुर्गा विसर्जन आदि) का समर्थन है, बल्कि इसका तो खंडन है। फिर यज्ञ क्या है - राग, द्वेष से रहित, दुसरो के हित में ही अपना हित  समझना, बांट के खाना, तप की अग्नि में अपने शुभाशुभ कर्मो (षट विकारों की आहुति, स्वाहा कर देना ही यथार्थ यज्ञ है।

आजकल एक और मान्यता प्रचलित है, कि शुद्ध संस्कृति मंत्रों के उच्चारण के बिना और शुद्ध घी और अन्य सामग्री के बिना यज्ञ संभव नही है। पर यज्ञ जिसमे शुभ और अशुभ कर्मों का हवन होता है , अर्थात कर्म बंधन से मुक्ति होती है, इसमें सही में क्या बाधा है- यही स्वार्थ, ममता , मोह की गाथा महाभारत है - जिसमे अनुराग रूपी अर्जुन भगवद ज्ञान और भक्ति में लीन होकर , लोक कल्याण हेतु अपना सबकुछ न्योछावर करके , अंत मे धन्यता प्राप्त करता है।

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