वेदव्यास जी के काल मे धर्म की वैसी ही अधोगति थी जैसी आज है। पिंडोदक क्रिया, कुल धर्म, वर्ण संकर, तरह तरह के देवी देवताओं की पूजा, भ्रांतियां और अंधविश्वास समाज मे भरा था। कोई विरला ही वेदांती, ज्ञानी होता था। कौरवों और पांडवों की गाथा महाभारत (ठीक ऐसा ही जैसा middle East म् आज हो रहा है) इसी का परिणाम है। महर्षि व्यास ने समाज की ऐसी दुर्दशा देखते हुए, जगह जगह घूमकर जहां कहीं भी जो ज्ञान - लिखित अथवा मौखिक , प्राप्त हुआ उसका संकलन (व्यास) किया। जो उन्होंने ऋषियों मुनियों से सुना (श्रुति) उसे उन्होंने चार भागों में बांटा। जो उन्होंने विद्वानों, शोधकारों, बड़े बूढ़ों से पाया उसे उन्होंने पुराणों (स्मृति) के रूप में प्रस्तुत किया।
फिर महाभारत युद्ध के पश्चात क्षुब्ध होकर महाभारत ग्रंथ की रचना की, जोकि 100000 श्लोकों का न होकर, केवल 6000 श्लोकों का था। इससे भी उनको शांति नही मिली, तब नारद जी की प्रेरणा से उन्होंने श्रीमद भागवद का प्राकट्य किया। अर्थात धर्म, अधर्म के झमेले से निकलकर, भगवद भक्ति को अपना लिया।
समाज, कुल, देश के लिए हमें क्या करना चाहिए ये एक महत्वपूर्ण सवाल है (ये हमारी श्रुति, स्मृति पर निर्भर है, आजकल दोनों कमजोर है)। जैसे पांडवों की श्रुति, स्मृति बचपन मे ऋषियों के साथ रहने से अलग थी, कौरव शहर में रहकर पीला बढ़े। आजकल भी ग्रामीण , आदिवासी , पहाड़ी, और शहरी की विचारधारा मिलने थोड़े वाली है!! ज्ञान हो या विकास सबके ऊपर थोपा नही जा सकता, क्योंकि किसी को tradition पसंद है और किसी को भागदौड़ की जिंदगी!!
इसलिए सबसे ऊपर है अपनी आत्म प्रगति, एक अच्छा इंसान बनने की चेष्टा , भगवान की भक्ति। यहां यह दृष्टि आवश्यक है, कि सब तो पहले से ही मेरे हैं - समय, काल के आगे इंसान का कोई बस नही।
फिर महाभारत युद्ध के पश्चात क्षुब्ध होकर महाभारत ग्रंथ की रचना की, जोकि 100000 श्लोकों का न होकर, केवल 6000 श्लोकों का था। इससे भी उनको शांति नही मिली, तब नारद जी की प्रेरणा से उन्होंने श्रीमद भागवद का प्राकट्य किया। अर्थात धर्म, अधर्म के झमेले से निकलकर, भगवद भक्ति को अपना लिया।
समाज, कुल, देश के लिए हमें क्या करना चाहिए ये एक महत्वपूर्ण सवाल है (ये हमारी श्रुति, स्मृति पर निर्भर है, आजकल दोनों कमजोर है)। जैसे पांडवों की श्रुति, स्मृति बचपन मे ऋषियों के साथ रहने से अलग थी, कौरव शहर में रहकर पीला बढ़े। आजकल भी ग्रामीण , आदिवासी , पहाड़ी, और शहरी की विचारधारा मिलने थोड़े वाली है!! ज्ञान हो या विकास सबके ऊपर थोपा नही जा सकता, क्योंकि किसी को tradition पसंद है और किसी को भागदौड़ की जिंदगी!!
इसलिए सबसे ऊपर है अपनी आत्म प्रगति, एक अच्छा इंसान बनने की चेष्टा , भगवान की भक्ति। यहां यह दृष्टि आवश्यक है, कि सब तो पहले से ही मेरे हैं - समय, काल के आगे इंसान का कोई बस नही।
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