Sanatan vs Hindutva: Saints, Sages, and the Hijacking of Truth
संतों-महात्माओं के नाम पर Othering, Politics और Appropriation
कुछ उदाहरण विद्वानों / पत्रकारों के हवाले से:
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Kabir: “जाति और धर्मी राजनीति”
- Kabir ने caste system की कट्टर आलोचना की। “जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिये ज्ञान” जैसे दोहों ने जन्म-जाति की धार्मिक वैधता पर सवाल उठाया।
- हालाँकि आज इस संदेश को राजनीति में vote bank बनाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। उदाहरण के लिए मदाघर (Maghar) चुनाव प्रचार में Kabir की याद को communal/caste identity politics के हिस्से के रूप में प्रस्तुत किया जाना।
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Guru Nanak Dev Ji: समानता, एकता और विरोधी धर्म-भेदभाव
- गुरु नानक ने “ना कोई हिंदू, ना कोई मुसलमान” की विचारधारा दी, और मानवता के एकत्व पर बल दिया।
- “Guru-ka Langar” की परंपरा जहां सभी जाति-धर्म-वर्ग के लोग मिल कर बैठते हैं, समान भोजन करते हैं — यह एक सामाजिक क्रांति का स्वरूप था।
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Sree Narayana Guru और Sanskritisation को चुनौती
- Kerala में Sree Narayana Guru ने उन्हें denied चीजों (access to gods, rituals, धार्मिक स्थान, प्रतिष्ठा) को appropriating किया — सिर्फ imitation नहीं, बल्कि समान उपलब्धता (equal access) की मांग की।
- उनका आंदोलन यह दिखाता है कि “upper-caste” धार्मिक और संस्कृतिक प्रतीकों का उपयोग किस तरह political power और social prestige के लिए हुआ।
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शंकराचार्य की भूमिका और राजनीति से क्लेश
- हाल ही में, Puri के वर्तमान Shankaracharya ने जनता के बीच “Gau को राष्ट्र माता घोषित किए जाने” जैसे बयानों पर विवाद किया है, जो सांस्कृतिक प्रतीकवाद और राजनीति के मिश्रण को दिखाता है।
- वही Shankaracharya ने यह भी कहा है कि धार्मिक आयोजनों में राजनीतिक हस्तक्षेप गलत है, लेकिन उनकी बोलियाँ अक्सर स्व-विरोधाभासी लगती हैं (मौका-मौका पर राजनीति खेल की भूमिका में)।
Modern Information Revolution की घोषणा
इन उदाहरणों से ये साफ़ होता है कि संतों-महात्माओं के नाम पर कभी धर्म, कभी संस्कृति, कभी राजनीति, कभी identity politics फैलाई गई है — अक्सर मूल संदेश को distort कर के।
अब समय आ गया है कि Sanatan के मूल तत्वों — सत्य, अहिंसा, समानता, मानवता — को पुनः खोजना जाए और उन्हें सूचना-क्रांति (Information Revolution) के ज़रिए बहस, लेख, ब्लॉग, सोशल मीडिया, शिक्षा के माध्यम से सामान्य जन तक पहुँचाया जाए।
- Transparency लाएँ: Saints की शिक्षाएँ, इतिहास, उनके मूल ग्रंथों की पठन-पाठन और व्याख्याएँ जनता तक पहुँचनी चाहिए बिना मध्यस्थों के distortion के।
- Critical education: स्कूल-कॉलेजों में Sant एवं Mystic literature को ऐसे पढ़ाया जाए कि वे blind reverence ना बढ़ाएँ बल्कि प्रश्न पूछना सिखाएँ।
- Digital archives और ग्रन्थों का ऑनलाइन प्रपंच: लोकगीत, दोहे, कविता, भजन, गुरु ग्रंथ साहिब आदि का authenticated डिजिटल रूप सदैव सुलभ हो।
- जन संवाद और debates: retreats, public forums, podcasts जहाँ संतों-महात्माओं की असली शिक्षाएँ और उनके द्वारा दिए गए सामाजिक संदेशों का विश्लेषण हो सके।
Scholarly & Reporter Sources (References)
संत / विषय | स्रोत / रिसर्च लेख / समाचार |
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Kabir और जाति-व्यवस्था पर उनका विरोध | PolSci Institute, “Kabir’s Vision for Religious and Social Harmony” ; Forward Press, “Kabir – Fearless sociologist who challenged conventions” ; Indian Express, Kabir Jayanti 2022 article |
Guru Nanak के सिद्धांत: समानता, मानवता | SikhNet: Guru Nanak and the Oneness of All Humanity ; Times of India articles on Guru Nanak’s message |
Sree Narayana Guru आंदोलन और Sanskritisation की आलोचना | Journal Article: “Sanskritisation as Appropriation of What Was Denied: A View from the Sree Narayana Guru Movement in Kerala” by Janaki Abraham, Sociological Bulletin 2022 |
Shankaracharya और आधुनिक राजनीतिक बयानबाज़ी | Times of India: Shankaracharya कहना कि गौ को राष्ट्र माता घोषित किया जाना चाहिए ; Scroll / The Hindu reporting political interference comment |
Modern Appropriations & Conspiracies
मित्रों, क्या कभी आपने सोचा है कि हमारे महान संतों और महात्माओं के नाम पर कितनी बार सत्ता और राजनीति ने खेल खेले हैं? क्या कभी यह महसूस किया है कि जिनके विचारों ने समाज में समानता और भाईचारे का संदेश दिया, उनके नाम का दुरुपयोग कर उन्हें एक विशेष विचारधारा के साथ जोड़ा गया? आइए, इस पोस्ट में हम उन महान व्यक्तित्वों की चर्चा करें, जिनके नाम पर सत्ता और राजनीति ने खेल खेले हैं।
1. स्वामी विवेकानंद और गोलवलकर की साजिश
स्वामी विवेकानंद ने हमेशा मानवता, समानता और समाज सुधार की बात की। उन्होंने शिकागो धर्म महासभा में अपने उद्घाटन भाषण में कहा था:
"आपका भारत वह नहीं है जो आप सोचते हैं। यह वह भारत है जहाँ हर व्यक्ति को सम्मान मिलता है, जहाँ हर धर्म का सम्मान होता है।"
लेकिन, बाद में, आरएसएस के प्रमुख गोलवलकर ने स्वामी विवेकानंद के विचारों का दुरुपयोग किया। उन्होंने विवेकानंद के विचारों को अपनी हिंदुत्ववादी विचारधारा को बढ़ावा देने के लिए इस्तेमाल किया। गोलवलकर ने अपनी पुस्तक "We, Our Nationhood Defined" में स्वामी विवेकानंद के विचारों को संदर्भित किया, लेकिन उनके मूल विचारों का सही संदर्भ नहीं दिया।
2. जिद्दू कृष्णमूर्ति और धर्म के व्यापारी
जिद्दू कृष्णमूर्ति ने हमेशा संस्थागत धर्म और अंधविश्वास के खिलाफ आवाज उठाई। उन्होंने कहा था:
"सत्य एक पथहीन भूमि है।"
लेकिन, कुछ धर्मगुरुओं ने उनके नाम का दुरुपयोग किया। उन्होंने कृष्णमूर्ति के विचारों को अपने अनुयायियों को आकर्षित करने के लिए इस्तेमाल किया, जबकि कृष्णमूर्ति ने कभी भी किसी धर्मगुरु या संस्था की आवश्यकता नहीं बताई।
3. सत्य साईं बाबा और उनके विवाद
सत्य साईं बाबा ने खुद को भगवान का अवतार बताया और लाखों अनुयायी जुटाए। लेकिन, उनके खिलाफ कई गंभीर आरोप उठे। उन्होंने अपनी संस्था के माध्यम से अपार धन अर्जित किया, लेकिन उनके द्वारा किए गए कार्यों की पारदर्शिता पर सवाल उठे।
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Swami Vivekananda (1863–1902)
- असली Vivekananda का संदेश था universalism, service, fearless questioning।
- लेकिन बाद के दशकों में उनकी छवि को Hindutva ideologues ने manipulate किया।
- M.S. Golwalkar (RSS के दूसरे प्रमुख) ने Vivekananda को selectively quote करके “Hindu Rashtra” narrative को वैध ठहराने की कोशिश की।
- “Vivekananda Kendra” और अन्य समितियाँ भी इसी तरह से खड़ी की गईं ताकि उनकी छवि को nationalist-Hindutva रंग में ढाला जा सके।
- जबकि वास्तविक Vivekananda का संदेश caste और communal boundaries को तोड़ने का था, जिसे उन्होंने Chicago Parliament of Religions (1893) में openly कहा।
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Jiddu Krishnamurti (1895–1986)
- Krishnamurti ने पूरे जीवन institutional religion और blind authority का विरोध किया।
- Theosophical Society ने उन्हें “World Teacher” घोषित करने की कोशिश की, लेकिन उन्होंने खुद 1929 में ही इसे dissolve कर दिया।
- बाद के दशकों में भी कई organizations ने उनके नाम पर schools/ashrams बनाकर branding की, जबकि Krishnamurti ने explicitly कहा था: “Truth is a pathless land.”
- Hindutva और commercial spirituality दोनों ही ने उनकी radical freedom की teaching को dilute करके एक safe “guru brand” बना दिया।
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Sathya Sai Baba (1926–2011)
- Puttaparthi वाले “Sathya Sai Baba” को global spiritual guru के रूप में promote किया गया।
- लेकिन उनके खिलाफ गंभीर आरोप (sexual abuse, financial opacity, staged miracles) लगातार उठते रहे।
- उनके cult ने transparency से इनकार किया और बड़े राजनीतिक–व्यापारिक network से security पाई।
- वहीं, “Prem Sai Baba” narrative गढ़ कर एक और line of succession तैयार किया गया ताकि faith economy चलती रहे।
- Sai नाम पर charitable institutions के साथ–साथ blind devotion का विशाल machinery खड़ा हो गया।
The Larger Pattern
- Saints और mystics की radical voices — चाहे Vivekananda हों या Krishnamurti, Kabir हों या Nanak — हमेशा सत्ता और dogma के खिलाफ थीं।
- लेकिन हर बार सत्ता और संगठनों ने उन्हें hijack कर लिया, और उनका नाम इस्तेमाल हुआ violence, control या cult building के लिए।
Information Revolution as Dharma-Yuddha
आज का संदेश साफ़ है:
- Vivekananda का असली universalism,
- Krishnamurti की pathless freedom,
- Gandhi का अहिंसा,
- Kabir का ढोंग–विरोध,
- Nanak की oneness,
👉 इन्हें distort करने वालों को expose करना ही आज का सनातनी कर्तव्य है।
Modern Information Revolution (Substack, Blogs, Podcasts, Open archives) ही असली “Kurukshetra” है।
यहाँ शस्त्र नहीं, सत्य और सूचना हमारे अस्त्र हैं।
निष्कर्ष
हमारे महान संतों और महात्माओं के विचारों का दुरुपयोग करना न केवल उनके प्रति अन्याय है, बल्कि समाज के लिए भी हानिकारक है। हमें उनके वास्तविक विचारों को समझना चाहिए और उनका पालन करना चाहिए। हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उनके नाम का दुरुपयोग न हो और उनके विचारों का सही तरीके से प्रचार-प्रसार हो।
संदर्भ:
- "We, Our Nationhood Defined" by M.S. Golwalkar
- "The Collected Works of Swami Vivekananda"
- "Jiddu Krishnamurti: A Biography" by Mary Lutyens
- "Sathya Sai Baba: The Man, The Mission, The Message" by N. Kasturi
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