Friday, August 15, 2025

समस्याओं के भ्रम को समझना - जे. कृष्णमूर्ति की बुद्धिमत्ता पर चिंतन

 समस्याओं के भ्रम को समझना - जे. कृष्णमूर्ति की बुद्धिमत्ता पर चिंतन

#### परिचय
जे. कृष्णमूर्ति के गहन शब्द, "यदि हम वास्तव में समस्या को समझ सकते हैं, तो इसका उत्तर उसी से निकलेगा, क्योंकि उत्तर समस्या से अलग नहीं है," हमें सतह के समाधानों से परे देखने और चुनौतियों की जड़ तक जाने के लिए प्रेरित करते हैं। यह दर्शन शास्त्रों, भगवद्गीता और रामचरितमानस की उन शिक्षाओं के साथ गहराई से मेल खाता है, जो कहती हैं कि हमारी कई समस्याएँ अज्ञानता या आसक्ति से उत्पन्न भ्रम हैं। आइए इस विचार को और गहराई से समझें, विशेष रूप से शनि देव से जुड़ी कठिनाइयों के संदर्भ में, जो अक्सर भ्रम के रूप में सामने आती हैं और बाहरी रीतियों से नहीं, बल्कि सही समझ से हल होती हैं।

#### समस्याओं का भ्रम
कृष्णमूर्ति सुझाते हैं कि उत्तर समस्या के भीतर ही निहित है, जिसका अर्थ है कि हम जो समस्या समझते हैं, वह वास्तव में एक मानसिक निर्माण हो सकता है। हिंदू पौराणिक कथाओं में, शनि देव को कठिनाइयों और दुर्भाग्य का कारण माना जाता है। हालाँकि, आध्यात्मिक ज्ञान सिखाता है कि ये कठिनाइयाँ शनि देव की पूजा से नहीं, बल्कि पीड़ा के भ्रम को पार करने से हल होती हैं। समाधान तब सामने आता है जब हम अपने दृष्टिकोण को बदलते हैं और अपनी चुनौतियों की अस्थायी प्रकृति को पहचानते हैं।

#### शास्त्रों से अंतर्दृष्टि
उपनिषदों में चांदोग्य उपनिषद से *“तत् त्वम् असि”* (तू ही वह है) का उपदेश इस भावना को प्रतिध्वनित करता है, जो हमें दुख और अलगाव के भ्रम को भंग करते हुए ईश्वर के साथ एकता की याद दिलाता है। इसी तरह, भगवद्गीता (अध्याय 2, श्लोक 14) में कहा गया है:  
*“मात्रास्पर्शास्तु कौन्तेय शीतोष्णसुखदुःखदाः  
आगमापायिनोऽनित्यास्तांस् तितिक्षस्व भारत”*  
(अनुवाद: "हे कुन्तीपुत्र, इंद्रियों और उनके विषयों के बीच संपर्क जो सुख-दुःख का अस्थायी बोध उत्पन्न करते हैं, वे नश्वर हैं। उन्हें सहन करो, हे भारत।")  
यह श्लोक हमें क्षणिक समस्याओं से ऊपर उठने और उन्हें भौतिक दुनिया के भ्रम के रूप में पहचानने के लिए प्रेरित करता है।

#### रामचरितमानस से ज्ञान
रामचरितमानस में तुलसीदास ने भगवान राम के जीवन के माध्यम से इसको सुंदरता से चित्रित किया है। जब राम को वनवास का सामना करना पड़ता है, तो वे इसे समस्या नहीं, बल्कि अपने दिव्य उद्देश्य का हिस्सा मानते हैं। तुलसीदास लिखते हैं:  
*“राम बिनु कोई सुख न पावा, जेहि भजत मन कैलेश जावा”*  
(अनुवाद: "राम के बिना कोई सुख नहीं पाता, उनकी भक्ति से मन के कष्ट दूर हो जाते हैं।")  
यह सुझाव देता है कि वनवास या कठिनाई की "समस्या" तब हल होती है जब हम अपनी समझ को दिव्य इच्छा के साथ जोड़ते हैं, न कि रीतियों से।

#### कृष्णमूर्ति की अंतर्दृष्टि का प्रयोग
यदि हम शनि देव के प्रभाव के संदर्भ में कृष्णमूर्ति की शिक्षाओं को लागू करें, तो "समस्या" शनि देव के क्रोध में नहीं, बल्कि समाधान से अलग होने के भ्रम में है। केवल पूजा पर निर्भर होने के बजाय, सच्ची मुक्ति आत्म-जागरूकता और चुनौतियों की अस्थायी प्रकृति को समझने से आती है। उत्तर उसी स्पष्टता से निकलता है, जैसे राम ने अपनी नियति को बुद्धिमत्ता से स्वीकार किया, न कि रीतियों से।

#### निष्कर्ष
जे. कृष्णमूर्ति का दर्शन गीता और रामचरितमानस की समयसिद्ध बुद्धिमत्ता के साथ सुंदरता से मेल खाता है, जो हमें समाधान के लिए भीतर देखने के लिए प्रेरित करता है। अगली बार जब हम शनि देव या किसी अन्य स्रोत से जुड़ी "समस्या" का सामना करें, तो रुकें, उसके भ्रमपूर्ण स्वरूप को समझें और उस स्पष्टता से उत्तर निकलने दें। सच्ची शांति बाहरी पूजा में नहीं, बल्कि यह realizing में है कि समाधान और समस्या एक हैं।

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*नोट: यह पोस्ट कृष्णमूर्ति के उद्धरण और पारंपरिक शास्त्रों से प्रेरित एक चिंतनात्मक लेख है। अपनी टिप्पणियाँ नीचे साझा करें!*


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