गायत्री मंत्र – एक ही मंत्र में पूरा वेद-विज्ञान
“ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।”
दोस्तों, गायत्री मंत्र सिर्फ एक मंत्र नहीं, बल्कि पूरे वेदों का सार है। इसमें धरती से लेकर ब्रह्माण्ड तक और मनुष्य की बुद्धि से लेकर परम चेतना तक सब कुछ समाया हुआ है।
🌍 भूः, भुवः, स्वः – तीन लोक
- भूः – यह धरती जहाँ हम रहते हैं।
- भुवः – आकाश और सूर्य-मंडल, जो हमें जीवन देता है।
- स्वः – वह ऊँचा ब्रह्माण्ड, जहाँ शुद्ध चेतना बसती है।
सीधे शब्दों में – धरती, सूरज और ब्रह्माण्ड।
☀️ तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य
यहाँ हम उस सूरज को याद करते हैं जो हमें रोशनी और ऊर्जा देता है। लेकिन मंत्र कहता है – असली सविता (Sun) तो सिर्फ प्रतीक है, असली शक्ति तो उससे भी परे है, जो हजार सूरजों की चमक से भी अधिक है (गीता 11:12)।
🧘 धीमहि – ध्यान और बुद्धि का आलोक
इस मंत्र में हम कहते हैं –
“हे प्रभु! हम आपका ध्यान करते हैं, आप हमारी बुद्धि को प्रेरित करो।”
यानी यह मंत्र हमारी सोच और विवेक को ऊपर उठाने का साधन है।
👨👦 पिता की सीख
एक पिता अपने बेटे से कहता है:
“बेटा, गायत्री मंत्र का जाप कर रहा है, पर जानता है यह बिजली जैसा झटका भी दे सकता है? इसलिए पहले सीताराम का नाम ले — सत्य, अहिंसा और मानवता को आधार बना।”
मतलब – गायत्री की शक्ति बहुत तेज़ है। उसे संभालने के लिए मन और जीवन को सत्य, प्रेम और अहिंसा से तैयार करना ज़रूरी है।
🤔 मानवता और सभ्यता की नींव
“जिन्हें मानवता का ‘M’ और Civilization का ‘C’ भी न पता हो, वो सीताराम का नाम कैसे ले सकते हैं?”
यानी बिना मानवता और सभ्यता के साधना अधूरी है। नाम जप तभी असर करेगा जब हम इंसानियत और सच्चाई को अपने जीवन में उतारें।
🌞 निष्कर्ष
गायत्री मंत्र हमें देता है:
- ब्रह्माण्ड की समझ (भूर्-भुवः-स्वः),
- सूर्य के रूप में दिव्य शक्ति का प्रतीक,
- और हमारी बुद्धि को प्रकाशमान करने का साधन।
लेकिन अगर जीवन में सत्य, मानवता और अहिंसा (सीताराम) नहीं है, तो यह ऊर्जा हमें भटका भी सकती है।
👉 इसीलिए गायत्री सिर्फ मंत्र नहीं, बल्कि जीवन जीने का तरीका है।
✍️ संदर्भ:
- ऋग्वेद 3.62.10 – गायत्री मंत्र।
- श्री अरविन्द, The Secret of the Veda।
- स्वामी विवेकानन्द, Complete Works, खंड 4।
- महात्मा गाँधी, यंग इंडिया (1924)।
- भगवद गीता 11:12।
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