Friday, August 15, 2025

हे ईश्वर, अद्भुत लीला तुम्हारी



हे ईश्वर, अद्भुत लीला तुम्हारी

“If our religion is based on salvation, our chief emotions will be fear and trembling. If our religion is based on wonder, our chief emotion will be gratitude.”
– Carl Jung

स्विस मनोवैज्ञानिक कार्ल युंग का यह वचन धर्म के गहरे स्वरूप पर प्रकाश डालता है। वे कहते हैं कि यदि धर्म केवल मुक्ति और पाप से छुटकारे पर आधारित होगा, तो मनुष्य के भीतर मुख्य भावनाएँ होंगी – भय और काँपना
लेकिन यदि धर्म आश्चर्य और अद्भुतता पर आधारित होगा, तो उसकी मुख्य भावना होगी – कृतज्ञता

 
✦ भय और प्रेम का अंतर

धर्म यदि केवल मुक्ति और पाप से छुटकारे पर आधारित होगा, तो मनुष्य के भीतर मुख्य भावनाएँ होंगी – भय और काँपना।
पर यदि धर्म आश्चर्य और अद्भुत लीला पर आधारित होगा, तो उसकी मुख्य भावना होगी – कृतज्ञता और प्रेम।


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🌸 भजन पंक्ति

भय से जो पूजा करै, मन रहे अधूरा।  
प्रेम से जो भजे तुम्हें, पावे सुख पूरा।।


✦ पश्चिम का दृष्टिकोण

पश्चिमी ईसाई धर्म में लंबे समय तक “पाप” और “उद्धार” (salvation) पर ज़ोर रहा। ईश्वर को दंड देने वाला न्यायाधीश माना गया। इसका परिणाम था – अपराधबोध और भय।

परंतु बाद में रहस्यवादी और कवि संतों ने ईश्वर को अद्भुत सौंदर्य और करुणा के रूप में अनुभव किया। वहाँ धर्म भय से हटकर आश्चर्य और आभार का माध्यम बन गया।


✦ भारतीय दृष्टिकोण

भारतीय दर्शन में भी यह भेद स्पष्ट है – भय-भक्ति और प्रेम-भक्ति

🕉 गीता का संदेश

भगवद्गीता (9.22) में श्रीकृष्ण कहते हैं –

“अनन्याश्चिन्तयन्तो मां ये जनाः पर्युपासते,
तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम्।”

अर्थात् जो भक्त केवल मुझमें ही मन लगाकर भक्ति करते हैं, उनके लिए मैं स्वयं उनके योगक्षेम का वहन करता हूँ।
यहाँ भय नहीं, बल्कि भरोसा और कृतज्ञता प्रमुख है।

 🌸 भजन पंक्ति

कृतज्ञ हृदय जो रखे, सब चिंता हरि लेय।  
राम-कृष्ण नाम जपै, भव-सागर तरि जाए।।

📖 रामचरितमानस का सन्देश

गोस्वामी तुलसीदास कहते हैं –

“भय बिनु होइ न प्रीति।”

अर्थात प्रारंभ में भय से भक्ति उत्पन्न हो सकती है, परंतु सच्चा प्रेम भय से ऊपर उठकर ही मिलता है।
रामचरितमानस का सार यही है कि भगवान राम की भक्ति का सर्वोच्च रूप प्रेम और आश्चर्य है, न कि केवल भय।

 🌸 भजन पंक्ति

भय से चरणन में गयो, पाया पथ सुधार।  
प्रेम से जब लीन भए, खुला मोक्ष द्वार।।


✦ अद्भुत लीला – Wonder as Religion

उपनिषद भी कहते हैं: “आश्चर्यो वक्ता, कुशलोऽस्य लब्धा।”
(कठोपनिषद 1.2.7) – आत्मा और ब्रह्म का अनुभव सदैव एक आश्चर्य है।

जब धर्म केवल भय और दंड पर आधारित होता है तो आत्मा सिकुड़ जाती है। लेकिन जब धर्म को हम लीला और अद्भुत आश्चर्य के रूप में देखते हैं, तो हृदय अपने आप कृतज्ञता से भर जाता है।

 
✦ कर्म और लीला का रहस्य

ईश्वर की लीला और कर्म की गति अपरंपार है।
कभी अजामिल जैसे पापी को एक नाम से तार देते हैं,
कभी गणिका को प्रेम-भक्ति से उद्धार देते हैं,
और कभी महात्माओं को भी कठोर परीक्षा में डाल देते हैं।


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🌸 भजन पंक्ति

तेरी गति न्यारी प्रभु, तेरा न्याय अपार।  
कब किसको तारि दियो, कब किसको संहार।।


✦ निष्कर्ष

  • युंग के अनुसार – भय वाला धर्म रोगी आत्मा बनाता है, अद्भुतता वाला धर्म स्वस्थ आत्मा बनाता है।
  • गीता के अनुसार – प्रेममय भक्ति से ईश्वर स्वयं रक्षा करते हैं।
  • तुलसीदास के अनुसार – भय एक सीढ़ी है, पर प्रेम ही परम लक्ष्य है।

 🌸 समापन प्रार्थना

इसलिए प्रार्थना यही है –

हे ईश्वर, अद्भुत लीला तुम्हारी।
भय से ऊपर उठकर कृतज्ञता और प्रेम से तुम्हारा अनुभव हो।

तेरी महिमा अपरंपार, कर्म की गति न्यारी।  
हे ईश्वर अद्भुत लीला, करूँ तुझ पर बलिहारी।।



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