Tuesday, July 1, 2025

आत्म-साक्षात्कार की अंतिम परीक्षा — प्रेम का रूपांतरण



शीर्षक: आत्म-साक्षात्कार की अंतिम परीक्षा — प्रेम का रूपांतरण

उपशीर्षक: जब व्यक्तिगत प्रेम, ब्रह्म प्रेम में परिवर्तित होता है — तब आत्मा परिपक्व होती है।

"जब तक रूमानी कल्पनाएँ और इंद्रिय लालसाएँ बनी रहती हैं, आत्मा किसी उच्चतर चेतना के लिए तैयार नहीं होती।" — कार्ल युंग


प्रेम मानव जीवन का सबसे गूढ़ और व्यापक अनुभव है — परंतु यह प्रेम अनेक स्तरों पर घटित होता है। साधारण व्यक्ति के लिए प्रेम एक आकर्षण, एक आवश्यकता, एक भावुक संबंध होता है। लेकिन जो आत्मा आत्म-साक्षात्कार की ओर अग्रसर होती है, उसके लिए प्रेम एक साधना बन जाता है।

कार्ल युंग ने चेतना की परतों की चर्चा करते हुए 'इंडिविजुएशन' (Individuation) की प्रक्रिया को आत्मा की परिपक्वता से जोड़ा। उनका मानना था कि जब तक हम प्रेम को केवल निजी संबंधों, रूमानी कल्पनाओं और मानसिक लालसाओं के दायरे में बाँधे रखते हैं, तब तक हम अपने भीतर के संपूर्ण आत्म को नहीं पहचान सकते।


उपनिषद और तंत्र की दृष्टि से प्रेम

बृहदारण्यक उपनिषद में कहा गया है:
"न वा अरे पत्या कामाय पतिः प्रियो भवति, आत्मनस्तु कामाय पतिः प्रियो भवति।"
(पति इसलिए प्रिय नहीं होता कि वह पति है, बल्कि इसलिए कि उसमें व्यक्ति अपना आत्मस्वरूप पहचानता है।)

यहाँ 'प्रेम' को 'आत्मा के प्रतिबिंब' के रूप में देखा गया है — जब तक हम प्रेम को अपने सीमित अहं के चश्मे से देखते हैं, तब तक वह मोह बन जाता है। परंतु जब वही प्रेम समस्त जीवों में आत्म-दर्शन करने लगता है, तब वह 'भक्तियोग' या 'तंत्र मार्ग' का द्वार खोलता है।

तंत्र में काम (कामना) को केवल दमन करने की नहीं, बल्कि रूपांतरण (Transformation) की प्रक्रिया माना गया है। वहाँ यह स्पष्ट कहा गया है कि "काम को शक्ति बनाना ही साधना है।"


प्रेम का रूपांतरण: एक अग्नि परीक्षा

जो प्रेम केवल पाने की लालसा से जन्मे, वह बंधन है।
जो प्रेम देने और विसर्जन में परिवर्तित हो जाए, वह मुक्ति है।

यही वह 'inner alchemy' है, जिसकी बात तंत्र, सूफी परंपरा, और कार्ल युंग सभी करते हैं। जब प्रेम में "मैं और तू" का भेद समाप्त हो जाए, जब प्रेम किसी विशेष देह या नाम में सीमित न रह जाए — तब व्यक्ति आत्म-साक्षात्कार के द्वार पर पहुँच जाता है।


निष्कर्ष:

आज के भौतिकतावादी युग में जहाँ प्रेम एक उपभोग की वस्तु बन गया है, वहाँ यह समझना आवश्यक है कि "सच्चा प्रेम हमें भीतर की ओर ले जाता है, न कि बाहर की ओर।"
जब तक व्यक्ति प्रेम को केवल निजी सुख और अपेक्षाओं का माध्यम मानता है, तब तक वह केवल स्वप्नलोक में भटकता है।
लेकिन जब वही प्रेम करुणा, समर्पण और अखिल मानवता के प्रति एक आत्मिक पुल बन जाता है — तब आत्मा परिपक्व होती है। तब प्रेम मोक्ष का मार्ग बन जाता है।


लेखक: आपकी आत्मान्वेषण की यात्रा में एक सहयात्री
(आप चाहें तो यहाँ अपना नाम, ब्लॉग लिंक या Substack लिंक जोड़ सकते हैं)



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