📜 रथयात्रा किसके लिए? सत्ता के लिए या सत्य के लिए?
✍️ लेखक: अक्षत अग्रवाल
स्थान: भारत/यूएई/ग्लोबल नागरिकता के अंतर्द्वंद्व से
दिनांक: 29 जून 2025
ये क्या हुआ?
किसी आदिवासी दोस्त से मुलाकात हुई।
वो न तो पढ़ा-लिखा अफसर था, न ही कोई NGO कार्यकर्ता।
बस एक सीधा-सच्चा मानव, जंगल का पुत्र—जिन्हें हम "वनवासी" कहते हैं।
वो बोला बहुत कम, पर उसकी आँखों में सदियों की पीड़ा थी।
दिल में एक हूक उठी—"कोई पेड़ लगाएं, कोई जंगल बचाएं।"
इस बार जब 'रथयात्रा' निकली, तो अंतर से आवाज आई —
"आदिवासी साथ हैं या निशाने पर?"
हर हर महादेव हुआ — लेकिन महादेव कहाँ हैं?
जैसे-जैसे उम्र बीती,
मैं भी 'हर हर महादेव' के उद्घोष में शामिल हुआ।
लेकिन सोचता हूँ—महादेव कहाँ हैं?
क्या वे काशी के कॉरिडोर में हैं?
या फिर उन जलते जंगलों, उजड़े गाँवों, और
झारखंड-छत्तीसगढ़-मणिपुर में शरण लिए बैठे हैं
जहाँ आदिवासियों की "शिव की बारात" को
आज नक्सली, अर्बन माओवादी या देशद्रोही कहकर कुचला जा रहा है?
कश्मीर से कन्याकुमारी तक – कौन बचा?
- कश्मीर में गुज्जर-बकरवाल आदिवासी खेतों से बेदखल किए जा रहे हैं।
- मणिपुर में कुकी जनजातियों को हिंदुत्व राजनीति के खेल में झोंक दिया गया।
- मध्यप्रदेश, उड़ीसा, आंध्रप्रदेश, तेलंगाना में जल, जंगल और जमीन
पर बुलडोज़र चल रहे हैं—कभी विकास के नाम पर, कभी धर्म के।
यह केवल ‘विकास’ नहीं, यह सांस्कृतिक सफाया है
आप कह सकते हैं—ये सब तो राज्य सरकारों की नीतियाँ हैं।
लेकिन ज़रा सोचिए—
केन्या में मसाई आदिवासी बस्तियाँ महफूज़ हैं।
कनाडा में 'फर्स्ट नेशन्स' का सम्मान बढ़ रहा है।
फिर भारत में ही क्यों,
तुलसीदास के 'शिव की बारात' को
हम 'जंगली', 'अनपढ़', और 'रोक' मानते हैं?
अब कौन सी रथयात्रा?
"प्रभु की विजय रथयात्रा निकली"—
ऐसा कहा जाता है हर चुनावी मौसम में।
लेकिन इस बार रथ नहीं निकले,
बल्कि आदिवासी बस्तियों से चीखें उठीं।
विजय किसकी और पराजय किसकी हो रही है?
क्या हम शिव की रथयात्रा निकालें
जो शांतिप्रिय, वनवासी, भूतभावन हैं?
या फिर उस सत्ता की,
जो हर असहमति को देशद्रोह कहती है,
हर आदिवासी आंदोलन को विदेशी षड्यंत्र?
अंत में – मेरा पश्चाताप और प्रतिज्ञा
मुझे भी अब समझ में आया—
हर हर महादेव कहना आसान है,
पर ‘महादेव’ को समझना कठिन।
अब मैं सिर्फ नारे नहीं दूँगा,
एक पेड़ लगाऊँगा,
एक आदिवासी मित्र से मित्रता निभाऊँगा,
और हर बार जब ‘रथयात्रा’ निकलेगी,
पूछूँगा—
"आदिवासी साथ हैं या निशाने पर?"
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क्योंकि चुप्पी भी एक अपराध होती है।
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