Sunday, June 22, 2025

एक चिंगारी आंखों की दिल की लगन बन जाती है

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 एक चिंगारी आंखों की दिल की लगन बन जाती है,
जब हद से बढ़ती है ख़िज़ा, रूह-ए-चमन बन जाती है।

तुम जब आंखों में आँखें डाल कर देखो, होश गुम हो जाता है,
तुम जब आंखें तरेरो, तो दिल क्षुब्ध हो जाता है।
और तुम जब आंखें बंद करो, तो दिल में टीस सी उठने लगती है।
हे कृष्ण, बस ऐसे ही अंतर्मन में रमे रहो किसी महात्मा के रूप में।

जब श्वास बने बांसुरी, और स्पंदन हो तुम्हारी गाथा,
जब मन हो वृंदावन, और अंतर हो राधा की व्यथा।
तब न कोई इच्छा बचे, न कोई भय की छाया हो,
बस तू ही तू हो नयन के जल में, तू ही छाया हो।

जब बढ़ जाए अन्याय, अत्याचार, अनाचार, दुराचार,
तब तुम बांसुरी छोड़कर धर्मचक्र धारण करो —
अपनी छात्रछाया में जलते दिलों का उपचार करो।

जब बजे युद्ध की विभीषिका, और टूटने लगे विश्वास,
तब तुम अपनी शरण में लेकर मुक्ति का सन्देश दो।
तुम केवल लीला पुरुष न रहो, साक्षात धर्मवीर बनो,
अधर्म के तम में, एक सुदर्शन प्रकाश बनो।

हे गोविंद! मेरे चित्त में चिरंतन स्वरूप बनकर ठहर जाओ,
जैसे दीपक में बाती, जैसे मोरपंख में घटा।
मैं राग बनूं तुम्हारे नाम का, तुम स्वर बनकर मुझे गाओ,
हे माधव! मेरी आत्मा में ही तुम श्रीहरि बनकर समा जाओ।

और इस तरह जीवन के चार चरणों में —
ज्ञानयोग, कर्मयोग, भक्तियोग और राजयोग की ज्योति जगाओ।
हे नंदलाल, मेरी साधना के हर पथ पर तुम ही दीप बनकर जलते रहो,
और जीवन की हर सांझ को ब्रह्म मुहूर्त की तरह शुभ बनाओ।

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