Monday, May 5, 2025

क्या आज की भारतीय संस्कृति को सराहा जाए — या हम इसे खोते जा रहे हैं?

 Title: क्या आज की भारतीय संस्कृति को सराहा जाए — या हम इसे खोते जा रहे हैं?

"मित्रों, जब मैं पैदा हुआ, पहली कलरिंग बुक, उसमें तिरंगा !
फिर जब बड़ा हुआ तो सुना, 'विजयी विश्व तिरंगा प्यारा'।
फिर जब और बड़ा हुआ तो ......!"

(तब तक मोबाइल और मिक्स कल्चर की आंधी आ चुकी थी!)

कभी-कभी सच में लगता है — क्या मैं संस्कारी हूं या "संस्कृति से spoil" हो गया हूं?

हमारे दौर में संस्कार माँ की कहानियों से शुरू होते थे और संस्कृति मोहल्ले के रामलीला मैदान तक फैली होती थी। आज के दौर में सब कुछ बदल गया है — बच्चों को समझाना भी कठिन हो गया है कि फाफड़ा जलेबी में स्वाद है, पर सामोसे का गुण अलग है।

तो सवाल उठता है — क्या भारतीय समकालीन संस्कृति को सराहा जाए? या छोड़ दिया जाए?

1. संस्कृति कोई एकरूपी चीज़ नहीं होती

आज की संस्कृति एक मिश्रण है — पुरानी परंपराओं का और नई सोच का। हम गणेश चतुर्थी भी मनाते हैं और इंस्टाग्राम रील्स भी बनाते हैं। और शायद यही इसकी सुंदरता है — ध्यान योग से लेकर ज़ुम्बा तक, फाफड़ा से लेकर पास्ता तक, सब कुछ समाहित है।

2. संस्कृति वही जो दिल छू जाए

अगर आज के युवा को 'गुलज़ार' का शेर और 'गली बॉय' दोनों ही पसंद हैं, तो क्या ये उनकी गहराई नहीं दर्शाता?
संस्कृति आज ‘भजन-कीर्तन’ से आगे बढ़कर 'Coke Studio' और ‘Indian classical fusion’ तक आ पहुंची है।

3. बदलाव को गले लगाकर भी जड़ें नहीं खोतीं

आप Apple का MacBook इस्तेमाल करें या नीम की दातून, फर्क नहीं पड़ता — जब तक आप जुड़ाव नहीं भूलते।
बात इतनी सी है — "जहाँ से चले थे उसे भूलो मत, पर जहाँ पहुंचना है उसे डर के रोको मत!"

4. बच्चों को क्या समझाएं?

उन्हें 'सामोसे का गुण' या 'फाफड़ा का स्वाद' नहीं, बल्कि मूल्य सिखाएं —

  • इज्ज़त कैसे दी जाती है,
  • धरती से प्रेम कैसे किया जाता है,
  • और खुद की पहचान कैसे बनाई जाती है।

5. तो क्या भारतीय संस्कृति को cherish करना चाहिए?

हां, पूरे दिल से!
पर सिर्फ पूजा-पाठ और त्योहारों में नहीं,
बल्कि हर दिन के आचरण, भाषा, सोच और अपनेपन में।


अंत में,
कभी-कभी लगे कि "मैं cultured हूं या culturally spoiled?"
तो खुद से पूछो —
"क्या मैं अपने से बड़ों का आदर करता हूं?"
"क्या मैं किसी की मदद कर देता हूं बिना मतलब के?"
"क्या मैं सच बोलता हूं, जब कोई नहीं देख रहा?"

अगर इन सवालों का जवाब हां है —
तो मित्रों, आप भारत की समकालीन संस्कृति के असली torchbearer हैं।

तो चलिए, थोड़ा तिरंगा रंग फिर से भरें — अपने जीवन की coloring book में।


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