Title: मानसिक रोगों का असली इलाज: ना दर्शन शास्त्र, ना मेडिकल साइंस — केवल भारतीय शास्त्रीय संगीत
क्या हुआ, कैसे हुआ, क्यों हुआ?
इन सवालों में उलझ कर इंसान आज पागलपन की कगार पर खड़ा है।
"अरे छोड़ो ये न सोचो।"
जब मन इन्हीं सवालों में compulsively उलझा रहता है — बार-बार, लगातार — तब समझो कि तुम चिंता, क्षोभ, anxiety और depression में फँस चुके हो।
आज का इंसान समाधान ढूंढता है —
- कभी प्राचीन भारतीय दर्शन में
- कभी आधुनिक मनोचिकित्सा और दवाओं में
- कभी योग, ध्यान, और कर्मकांडों में
पर क्या कोई स्थायी इलाज मिला है?
नहीं।
ये सब या तो temporary relief देते हैं या फिर एक नया चक्र आरंभ करते हैं।
असली इलाज क्या है?
"एक ओंकार सतनाम।"
ये कोई धार्मिक नारा नहीं, ये एक ध्वनि-चिकित्सा (Sound Therapy) है।
जब आप भजन, कीर्तन, आलाप, या राग के माध्यम से आत्मा को स्वर में डुबो देते हैं, तब विचार शांत होते हैं।
मन स्थिर होता है।
ना विश्लेषण चाहिए, ना तर्क — सिर्फ सुर की साधना।
क्यों नहीं काम करते दर्शन शास्त्र या दवाइयाँ?
- दर्शन शास्त्र विचारों का विश्लेषण सिखाते हैं — और यही विश्लेषण हमें जकड़ता है।
- मेडिकल साइंस लक्षण दबाता है, जड़ तक नहीं पहुँचता।
- ध्यान और पूजा तब तक अधूरे हैं जब तक मन का कंपन रुके नहीं — और यह केवल संगीत से रुकता है।
भारतीय शास्त्रीय संगीत का जादू:
- राग "दरबारी" मन को गहराई देता है
- राग "भैरव" प्रातःकाल की नवीन ऊर्जा लाता है
- राग "यमन" में करुणा और स्वीकार का भाव है
- भजन और कीर्तन में सामूहिक ऊर्जा का उन्नयन होता है
इन सबके मूल में एक ही तत्व है:
ध्वनि का कंपन, जो सीधे आत्मा को छूता है।
निष्कर्ष:
अगर आप या आपका कोई प्रिय व्यक्ति चिंता, क्षोभ, या अवसाद से गुजर रहा है —
तो उसे शास्त्रों या डॉक्टरों की ओर नहीं,
सुरों की ओर मोड़िए।
उसे "एक ओंकार सतनाम" में डुबो दीजिए।
वहीं है शांति, वहीं है इलाज।
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