Saturday, May 31, 2025

सच्चा प्रेम क्यों दुर्लभ है?

सच्चा प्रेम क्यों दुर्लभ है?

🌸 सच्चा प्रेम क्यों दुर्लभ है?

- एक आध्यात्मिक दृष्टिकोण श्रीमद्भागवत और रामचरितमानस के आलोक में

"झूठे भगवान मिल जाते हैं,
राष्ट्रभक्ति में पागल होना आसान है,
किसी इंसान या वस्तु के प्रति आसक्त होना भी सरल है —
पर सच्चा प्रेम पाना,
जो आत्मा को शांति दे —
वह बहुत कठिन है।"

आज के समय में "प्रेम" शब्द का प्रयोग बहुत बार होता है, लेकिन उसका अर्थ बहुत सीमित या भौतिक रह गया है। कोई किसी व्यक्ति से प्रेम करता है, कोई अपने देश या जाति से, कोई किसी विचारधारा से — लेकिन क्या यह सच्चा प्रेम है?

रामचरितमानस और श्रीमद्भागवत हमें सिखाते हैं कि सच्चा प्रेम वह है जिसमें स्वार्थ न हो, अपेक्षा न हो, केवल पूर्ण समर्पण और परमसत्ता की अनुभूति हो।

🔹 श्रीमद्भागवत का सन्देश – "प्रेम ही धर्म है"

स वै पुंसां परो धर्मो यतो भक्तिरधोक्षजे।
अहैतुकी अपरतिहता यया आत्मा सुप्रसीदति॥
(भागवतपुराण १.२.६)

भावार्थ: मनुष्यों का परम धर्म वही है जो भगवान के प्रति निष्काम, निरंतर, और निरहंकार प्रेम उत्पन्न करे। ऐसा प्रेम ही आत्मा को परम शांति देता है।

🔸 रामचरितमानस की दृष्टि – भगवान ही प्रेम का स्वरूप हैं

प्रेम भगति जल बिनु रघुराई।
मिलहिं न तातें बिनु सुरसरि नाई॥
(रामचरितमानस – अरण्यकाण्ड)

भावार्थ: जैसे गंगा जल के बिना स्नान नहीं हो सकता, वैसे ही प्रेम-भक्ति के जल के बिना भगवान की प्राप्ति संभव नहीं।

💔 झूठा प्रेम बनाम सच्चा प्रेम

झूठा प्रेम सच्चा प्रेम
आसक्ति पर आधारित आत्मा की स्वतंत्रता देता है
अपेक्षा करता है समर्पण करता है
दुख देता है शांति और आनंद देता है
सीमित है अनंत है
अहंकार से जुड़ा है विनम्रता से भरा है

🧠 क्यों लोग झूठे प्रेम में उलझ जाते हैं?

  • मोह और अहंकार: हम उस व्यक्ति, वस्तु या विचार को अपना मान बैठते हैं।
  • तत्काल सुख की इच्छा: हम अधीर होकर जल्दी सुख चाहते हैं, जबकि सच्चा प्रेम धैर्य मांगता है।
  • अज्ञान: हम यह नहीं पहचान पाते कि सच्चा प्रेम क्या होता है — और इसलिए किसी भी आकर्षण को प्रेम मान लेते हैं।

🌿 भगवान से सच्चा प्रेम — गोपियों का उदाहरण

श्रीमद्भागवत (दशम स्कंध, रासलीला): गोपियाँ संसार की सबसे बड़ी भक्त कहलाती हैं क्योंकि उनका प्रेम:

  • निस्वार्थ था
  • पूर्ण समर्पण था
  • कभी भी अपेक्षा नहीं थी
न त्वत्समानोऽस्त्यभवो न चापि विपरीतस्तथा।
य एष भगवन् भक्तो मन्मयः स त्वमेव हि॥
(भागवत १०.२९.४२)

भावार्थ: "हे भगवन्! आपके समान न कोई है, न होगा। आप स्वयं ही अपने प्रेम में लीन भक्त हैं।"

🙏 निष्कर्ष – सच्चा प्रेम केवल ईश्वर से सम्भव है

सच्चा प्रेम तुम्हें मनुष्यों में भी मिलेगा,
पर वह तभी, जब वह आत्मा से आत्मा का संबंध हो —
जैसे मीरा ने कृष्ण से, सीता ने राम से, और गोपियों ने अपने कान्हा से किया।

✍️ अंतिम पंक्तियाँ:

झूठा भगवान मिल जाएगा,
या कोई झूठा स्वप्न —
पर सच्चा प्रेम पाना,
आत्मा का सौभाग्य है।
और उसके लिए,
प्रेम खुद को खोजना होगा।

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