स्त्री की भावना अभिव्यक्ति : शब्दों से आगे की यात्रा
स्त्री की भावना केवल शब्दों तक सीमित नहीं होती, वह तो उसकी हर क्रिया, उसकी हर अभिव्यक्ति में सहज रूप से झलकती है। कभी माँ के कोमल स्पर्श में, कभी बहन की हँसी में, कभी पत्नी की चिंता में, और कभी बेटी की उम्मीदों में — उसकी भावना मौन रहकर भी बोलती है।
भावना की अभिव्यक्ति सिर्फ वाणी तक सीमित नहीं है। स्त्री जब रंगों से चित्र रचती है, या जब सुरों में अपनी आत्मा उड़ेलती है, तब वह बिना शब्दों के भी अपने भीतर की संवेदना प्रकट करती है। संगीत, नृत्य, चित्रकला, पाक-कला, सृजन के हर क्षेत्र में स्त्री का योगदान उसकी गहरी भावना की अभिव्यक्ति है। ये उसकी आत्मा की भाषा हैं, जहाँ हर स्वर, हर रंग, हर स्वाद उसके भीतर के भावों का प्रतिरूप बन जाता है।
घर का वातावरण भी स्त्री की भावना का प्रतिविंब होता है। उसकी करुणा, सहनशीलता और सृजनशीलता से ही घर में अपनापन पनपता है। स्त्री की भावनात्मक ऊष्मा से ही घर एक स्थान नहीं, एक जीवंत अनुभव बनता है — जहाँ सुख-दुख बाँटे जाते हैं, संस्कार सींचे जाते हैं, और भविष्य गढ़ा जाता है।
स्त्री की भावना में एक गहराई होती है, जो शब्दों से परे होती है। उसे समझने के लिए केवल सुनना नहीं, अनुभव करना पड़ता है। वह जब खामोशी से किसी को देखती है, तो उसकी आँखें भी बोलती हैं। वह जब थक कर भी रसोई में खड़ी होती है, तो उसका प्रेम पकवानों में घुलता है।
अतः यह आवश्यक है कि हम स्त्री की भावना को केवल उसके कहे गए शब्दों से नहीं, उसके सम्पूर्ण अस्तित्व से समझने का प्रयास करें। कला, संगीत, सृजन और ममता — ये सब उसकी मौन भाषा हैं, जिन्हें पढ़ने के लिए हृदय चाहिए, कान नहीं।
स्त्री की भावना को सम्मान देना, वास्तव में जीवन को समझना है।
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