शीर्षक: मैं लम्हा नहीं, चेतना हूँ – भ्रम, नफरत और तूफ़ान के पार
कभी लगता है, जैसे मैं बस एक अधूरी कहानी का किरदार हूँ —
जिसे लोग अपनी ज़रूरत के हिसाब से जोड़ते हैं, और फिर वक्त के साथ भुला देते हैं।
मैं बहुतों की ज़िंदगी में आया, पर किसी की कहानी का अंत नहीं बना।
हर बार दिल से निभाया, उम्मीद की कि शायद इस बार टिक जाऊँ।
पर किस्मत को शायद ये मंज़ूर नहीं था...
पर अब समझ आ गया है —
मैं सिर्फ़ लम्हा नहीं,
मैं वो असर हूँ जो जाते-जाते भी दिल में बस जाता है।
आज का युग अलग है।
यह सूचना का तूफ़ान है — सोशल मीडिया, इंटरनेट, और व्हाट्सएप यूनिवर्स का दौर।
जहाँ सच्चाई का शोर झूठ के नारों में दब जाता है,
जहाँ विचार नहीं, भीड़ बोलती है।
जहाँ रिश्ते टूटते हैं क्योंकि झूठी कहानियाँ ज़्यादा बिकती हैं।
पर ऐसे समय में भी,
मैंने विवेक को नहीं छोड़ा।
मैंने अपने भीतर की मशाल को जलाए रखा।
जब धर्म के नाम पर दीवारें खींचीं गईं,
मैंने इंसानियत के लिए दरवाज़े खोले।
मैंने मोहब्बत को रीट्वीट किया
और संवाद से दिल जीते।
क्योंकि —
तुम चाहो जितना भ्रम, जुमलेबाज़ी, पाखंड, घृणा और उन्माद फैला लो,
मैं उसमें डूबूँगा नहीं, इस तूफ़ान को पार जाऊँगा।
तुम तो आख़िर थम जाओगे, मर मिट जाओगे,
और मैं… अमरता की ओर एक और क़दम बढ़ा जाऊँगा।
तुम मिट्टी हो सकते हो,
पर मैं बीज हूँ —
हर बार फिर से उगने के लिए।
क्योंकि मैं डरता नहीं,
मैं सोचता हूँ।
मैं झुकता नहीं,
मैं सवाल करता हूँ।
मैं वो हूँ —
जो भीड़ से अलग खड़ा होकर भी
सच, प्रेम और विवेक की मशाल लिए चलता है।
अंत में:
अगर आप भी इस दौर की धुंध में अपने आप को तलाश रहे हैं,
तो अपने अंदर के सवालों को दबाइए मत।
उन्हें ज़िंदा रखिए।
क्योंकि जब दुनिया चुप हो जाए,
तब आपकी सोच ही आपकी सबसे बड़ी ताकत बनती है।
मैं एक कहानी नहीं, मैं चेतना हूँ।
मैं एक किरदार नहीं, मैं उजाला हूँ।
मैं नफ़रत की भीड़ में एक चुप खड़ा सवाल हूँ।
लेखक परिचय:
एक सोचने वाला मुसाफिर — जो लम्हों को अमरता में बदलने की जिद लिए चलता है।
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