Title: इतिहास की छाया में वर्तमान का युद्ध – जब सन् 1526 फिर दोहराया जा रहा है
जब लोदी से न निपट पाए तो बब्बर को बुलाया जाए,
जब बब्बर आकर जम जाए, तो फिर खिसियाया जाए।
न अपनी ताकत का पता, न दोस्त दुश्मन की खबर,
बस लड़ने मिटने की कसम खाया जाए।
बुद्धि का बैरंग ठोकता है सीना,
गुरिल्ला युद्ध से महाभारत जीता जाए।
इतिहास केवल किताबों में बंद किस्से नहीं होते — वे चेतावनी होते हैं, संकेत होते हैं। 16वीं सदी के उत्तर भारत में जब दिल्ली का सिंहासन लोदी वंश के हाथ से फिसल रहा था, तब आंतरिक विघटन और संकीर्ण राजनीति के चलते राजपूत योद्धा राणा सांगा तक ने बाबर जैसे विदेशी आक्रांता को भारत की राजनीति में खुला निमंत्रण दे दिया। बाबर आया, पानीपत का युद्ध हुआ, और फिर जो हुआ वह हम सब जानते हैं — एक मुगल साम्राज्य की नींव पड़ गई।
आज कुछ समान गूंज सुनाई देती है।
भारत – पाकिस्तान – इज़राइल: नया युद्ध-त्रिकोण?
आज का भारत आतंकवाद और छद्म युद्ध से जूझता हुआ, पाकिस्तान की ओर निगाह रखे बैठा है। पाकिस्तान, जो खुद आर्थिक संकट में डूबा है, इज़राइल जैसे दूर बैठे, रणनीतिक और तकनीकी रूप से कुशल राष्ट्र के साथ समीकरण साधने में जुटा है। एक तरह का "बाबरीकरण" हो रहा है — जब खुद समाधान नहीं निकाल पाए तो बाहरी शक्ति को बुला लिया जाए।
कहीं फिर से बाबर न जम जाए…
जिस तरह बाबर ने आकर लोदी को हटाया और खुद जड़ें जमाईं, उसी तरह आज भी अगर बाहरी ताकतें भू-राजनीतिक खेल में उतर आईं, तो यह भारत, पाकिस्तान और पूरे दक्षिण एशिया के लिए दीर्घकालिक संकट का रूप ले सकता है। इस बार हथियार तलवार नहीं, सॉफ्ट पावर, डिप्लोमेसी, साइबर युद्ध और ड्रोन होंगे।
राणा सांगा की भूल दोहराए जा रहे हैं?
राणा सांगा जैसे योद्धा की नीयत भले देशभक्ति से प्रेरित रही हो, पर उनकी रणनीतिक भूल ने भारत को सदियों की गुलामी सौंप दी। क्या आज भारत या पाकिस्तान के नीति-निर्माता भी वैसी ही भावनात्मक, संकुचित सोच में फंसे हैं?
समाधान युद्ध नहीं, समझदारी है
इतिहास बताता है कि ताकत केवल हथियारों में नहीं होती — वह होती है सही समय पर सही निर्णय में, दोस्त और दुश्मन की पहचान में, और सबसे जरूरी — आत्मविश्वास में। बुद्धि से लड़ाई लड़ी जाए, ताकि आने वाले पीढ़ियाँ हमें युद्ध के लिए नहीं, बुद्धिमत्ता के लिए याद रखें।
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