Tuesday, April 22, 2025

रिश्तों की पाठशाला: माँ, बेटी, बहन... और जीवन की अनिश्चित राह

हम सभी के जीवन में कुछ रिश्ते ऐसे होते हैं जो समय के साथ बदलते हैं, लेकिन हर पड़ाव पर हमें कुछ न कुछ सिखाते हैं। एक छोटी-सी कविता में यह भाव बड़ी खूबसूरती से समाए हुए हैं:

"जब मैं छोटा बच्चा था, अम्मा से बहुत डरता था,
फिर जब मैं एक लड़की का बाप बना, उससे बहुत कुछ सीखने को मिला,
अब मैं एक वयस्क हूं, अपनी बहना से बहुत कुछ सीखता हूं,
आगे न जाने क्या होगा, बुढ़ापे में बीवी का सहारा मिलेगा या नहीं।"

इस कविता में सिर्फ शब्द नहीं हैं — यह एक जीवन यात्रा है, जिसमें हर रिश्ते का एक चरण है, एक भूमिका है।

1. माँ — डर के पीछे ममता:
बचपन में हमें लगता था कि माँ सिर्फ डांटती हैं, लेकिन आज समझ आता है कि वह डर ममता की भाषा थी। माँ का सख्त होना दरअसल उनका सुरक्षा कवच था। वह डर नहीं, परवाह थी।

2. बेटी — कोमलता की गुरु:
जब एक पुरुष बेटी का पिता बनता है, तब उसमें एक नई समझ विकसित होती है। उसकी दुनिया छोटी-छोटी बातों से रंगीन हो जाती है। बेटी हमें संवेदनशीलता, धैर्य और निःस्वार्थ प्रेम का पाठ पढ़ाती है।

3. बहन — जीवन की साथी:
वयस्क जीवन में बहन एक ऐसे दोस्त के रूप में उभरती है, जो बिना शर्त सुने, समझे और मार्गदर्शन करे। वह हमारे भीतर के अकेलेपन को समझती है, और अपने स्नेह से उस खालीपन को भर देती है।

4. पत्नी — अनिश्चित भविष्य की चिंता:
जीवन के अंतिम पड़ाव की तरफ बढ़ते हुए, यह सवाल मन में अक्सर उठता है —
"आगे न जाने क्या होगा, बुढ़ापे में बीवी का सहारा मिलेगा या नहीं..."
यह पंक्ति एक चिंता, एक असुरक्षा की झलक देती है — कि जब हम सबसे अधिक निर्भर होंगे, क्या वह साथ बना रहेगा? यह सिर्फ एक सवाल नहीं, एक गहरी मानवीय भावना है — अकेलेपन का डर, साथ की तलाश।

समापन विचार:
ज़िंदगी की यह यात्रा रिश्तों की पाठशाला से होकर गुजरती है। माँ हमें अनुशासन सिखाती है, बेटी कोमलता, बहन समझदारी — और पत्नी हमें भविष्य की अनिश्चितता से जूझना सिखाती है। इन सभी रिश्तों में छुपी सीखों को अगर हम गहराई से समझें, तो ज़िंदगी थोड़ी और सहज, थोड़ी और सजीव लगती है।


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