Sunday, April 6, 2025
रामनौमी बनाम रामनवमी: चेतना से कर्मकाण्ड तक की यात्रा
प्रस्तावना:
हर वर्ष चैत्र शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को “रामनवमी” के रूप में मनाया जाता है। इस दिन को भगवान राम के जन्मोत्सव के रूप में मनाने की परंपरा है। परंतु क्या आपने कभी विचार किया है कि "रामनवमी" शब्द अपने मूल रूप "रामनौमी" का एक विकृत संस्करण हो सकता है? और क्या यह बदलाव सिर्फ भाषाई नहीं, बल्कि चेतना से कर्मकांड की ओर एक सुनियोजित संक्रमण है?
रामनौमी: चेतना का उत्सव
"रामनौमी" शब्द अपभ्रंश भाषाओं में गहराई से जुड़ा हुआ है। यहां “राम” का अर्थ केवल अयोध्या के राजकुमार से नहीं, बल्कि आत्मिक आदर्श, धर्म-चेतना, और मानव की उच्चतर अवस्था से है। “नौमी” या “नौ उमि” — यह संकेत करती है आत्मा की नव-जागृति, एक ऐसी अनुभूति जिसमें भीतर राम का प्राकट्य होता है।
यह “रामनौमी” आंतरिक साधना का पर्व है—न कि केवल एक कैलेंडर की तिथि।
रामनवमी: संस्कृतनिष्ठ संकुचन
संस्कृत और कर्मकाण्ड-प्रधान परंपराओं में “रामनवमी” का रूप लिया गया—“राम” + “नवमी तिथि”। यह बदलाव सिर्फ भाषाई नहीं है, यह चेतना की जीवंत प्रक्रिया को एक तिथिबद्ध, संस्थागत कर्मकांड में सीमित कर देता है। परिणामस्वरूप, राम अब एक जीवंत अनुभूति नहीं, बल्कि मूर्ति-पूजन और व्रतों में सीमित रह जाते हैं।
कर्मकांड का षड्यंत्र
यह केवल भाषा का परिवर्तन नहीं, बल्कि एक संस्कृति का पुनर्लेखन है। जब आत्मिक उन्नयन की प्रक्रिया को सिर्फ अनुष्ठानों तक सीमित कर दिया जाता है, तब वह शुद्ध चेतना से हटकर सामाजिक नियंत्रण का उपकरण बन जाती है। यह प्रक्रिया न केवल जनमानस को सत्ताओं के अधीन रखती है, बल्कि उन्हें उनके आत्मिक सत्य से भी दूर करती है।
निष्कर्ष: राम को फिर से भीतर जगाना होगा
आज आवश्यकता है “रामनौमी” को पुनः समझने की—एक ऐसे दिन के रूप में नहीं, जो पंचांग में आता है, बल्कि एक ऐसी यात्रा के रूप में जिसमें हम अपने भीतर “राम” को प्रकट करते हैं। यह आत्म-उत्सव है, बाह्य अनुष्ठान नहीं।
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