Pursuits of Life: भौतिक और आध्यात्मिक आयाम और उनके बीच डोलता इंसान
किसी अत्यंत हिंसक व्यक्ति का अहिंसक हो जाना कोई आश्चर्य नही। जैसे सम्राट अशोक, Alexander, सद्दाम हुसैन आदि।
अत्यधिक धनी , कंजूस और स्वार्थी का दानी हो जाना भी कोई आश्चर्य नही - जीवन मे कभी न कभी तो उसे धन की व्यर्थता का भान होगा ही।
अत्यधिक कामी का वैरागी या भक्त हो जाना भी कोई आश्चर्य नही - कभी न कभी तो उसे विरक्ति होगी ही : उदाहरण के लिए hippies , भारत के अनेकों साधू, तांत्रिक।
बहुत पकवान खाने के बाद, भोजन से वितृष्णा हो जाना कोई असाधारण बात नही।
इसी तरह जीवन मे भौतिक और आध्यात्मिक आयामो (pendulum ) के बीच घूमता इंसान जब चिर शांति, असीम संतोष, पूर्ण अहिंसा, प्रेम, सौहार्द को प्राप्त कर लेता है, और उस स्थिरता को प्राप्त कर लेता है तो उसको ही चरम स्थिति, स्थितप्रज्ञ, जीवन मुक्त कहा जाता है क्योंकि उसने समय, घड़ी के आंदोलन (pendulum) को बांध लिया है।
इतिहास में ऐसे विरले ही व्यक्ति है, शंकर, कबीर , नानक, रामकृष्ण परमहंस, रमण महर्षि, महात्मा गांधी जैसे जिन्होंने बिना काम, अर्थ, या ज्ञान , प्रतिष्ठा पाए ही उस चरम स्थिति को पा लिया हो। इसलिए साधारण व्यक्ति के लिए तो धर्म पूर्वक अर्थ और काम की पूर्ति ही पुरुषार्थ कहा गया है, जिसके जरिये वो मोक्ष के चरम लक्ष्य तक पहुंच सकता है। लेकिन यहां ये समझ लेना महत्वपूर्ण है कि धर्म, अर्थ, काम अपने मे ही परम लक्ष्य, ध्येय नही,बल्कि ये मोह के ही कारण हैं।
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