Gyaan yug se bhakti yuga tak:
(वेद, पुरान से श्रीमद भागवद तक, विवेकचूुड़ामनी से लेकर रामचरितमानस तक, और सत्यार्थ प्रकाश से लेकर प्रेमवाहिनी तक)
कुछ लोगों को अपनी बुद्धि पर ज्यादा विश्वास होता है। ऐसे कोई बुद्धिमान महापुरुष, युगपुरुष अवतरित हो जाएं धरती पर तो सभ्यता उन्ही का अनुकरण करने लगती है। उदाहरण महात्मा बुद्ध, आदि शकराचार्य, और आधुनिक युग मे मार्क्स, आइंस्टीन। अगर हम इन युगों को ज्ञानयुग की संज्ञा दें, तो उसके प्रभाव की तरफ थोड़ी दृष्टि डालें। जहां इन युगों में श्रेष्ठ ग्रंथ लिखे गए, भौतिक और scientific विकास सम्भव हुआ। वहीं विपरीत प्रभाव भी कुछ हुए या नही! क्या असहिष्णुता, वैमनस्य, हठधर्मिता, विरोध, युद्ध , अत्याचार बढ़े की नही!
वहीं दूसरी तरफ भक्ति युग (माइकल एंजेलो, shakespear, भारत मे सुर , कबीर, तुलसी, मीरा, चैतन्य) में जहां हृदय, प्रेम को महत्वपूर्ण स्थान मिला , महान भक्तो ने भक्ति धारा चारों तरफ प्रवाहित कर दी, वहां गाय और सिंह एक ही घाट पर पानी पीने लगे। मुस्लिम हिन्दू भाईचारा संभव हो सका। जे2स, क्रिस्चियन, तुर्की भाईचारा संभव हो सका। इतिहास इसका साक्षी है।
आज हज़ारों साल के इतिहास का इस दृष्टि से पुनरावलोकन जरूरी है, जिससे आने वाली नस्लों को कम से कम ये बुद्धि और हृदय का खेल समझ आये की बुद्धि के द्वारा अहंकार का पोषण होता है और मन को चित्त में स्थिर करने से शांति, सद्भाव और प्रेम , भाईचारा संभव है।
क्या वेद , पुराण और क्या बाइबिल, कुरान सभी कलियुग मे दूषित हो चुके , उनमें समय के साथ क्या क्या नही जोड़ा गया। इनमे माथा मारकर भ्रम के सिवा क्या हासिल होने वाला है? आजकल तो साइंस ने भी इतना भ्रमित किया कि लोग सठिया से गए है। कबीर जी कहते हैं -
ढाई अक्षर प्रेम का पढ़े सो पंडित होये।
गोस्वामी जी कहते है -
वेदों का पार नही, पुरानन की कथा अनन्त
जन्म जो सुधारा चाहो, राम नाम लीजिये।
(वेद, पुरान से श्रीमद भागवद तक, विवेकचूुड़ामनी से लेकर रामचरितमानस तक, और सत्यार्थ प्रकाश से लेकर प्रेमवाहिनी तक)
कुछ लोगों को अपनी बुद्धि पर ज्यादा विश्वास होता है। ऐसे कोई बुद्धिमान महापुरुष, युगपुरुष अवतरित हो जाएं धरती पर तो सभ्यता उन्ही का अनुकरण करने लगती है। उदाहरण महात्मा बुद्ध, आदि शकराचार्य, और आधुनिक युग मे मार्क्स, आइंस्टीन। अगर हम इन युगों को ज्ञानयुग की संज्ञा दें, तो उसके प्रभाव की तरफ थोड़ी दृष्टि डालें। जहां इन युगों में श्रेष्ठ ग्रंथ लिखे गए, भौतिक और scientific विकास सम्भव हुआ। वहीं विपरीत प्रभाव भी कुछ हुए या नही! क्या असहिष्णुता, वैमनस्य, हठधर्मिता, विरोध, युद्ध , अत्याचार बढ़े की नही!
वहीं दूसरी तरफ भक्ति युग (माइकल एंजेलो, shakespear, भारत मे सुर , कबीर, तुलसी, मीरा, चैतन्य) में जहां हृदय, प्रेम को महत्वपूर्ण स्थान मिला , महान भक्तो ने भक्ति धारा चारों तरफ प्रवाहित कर दी, वहां गाय और सिंह एक ही घाट पर पानी पीने लगे। मुस्लिम हिन्दू भाईचारा संभव हो सका। जे2स, क्रिस्चियन, तुर्की भाईचारा संभव हो सका। इतिहास इसका साक्षी है।
आज हज़ारों साल के इतिहास का इस दृष्टि से पुनरावलोकन जरूरी है, जिससे आने वाली नस्लों को कम से कम ये बुद्धि और हृदय का खेल समझ आये की बुद्धि के द्वारा अहंकार का पोषण होता है और मन को चित्त में स्थिर करने से शांति, सद्भाव और प्रेम , भाईचारा संभव है।
क्या वेद , पुराण और क्या बाइबिल, कुरान सभी कलियुग मे दूषित हो चुके , उनमें समय के साथ क्या क्या नही जोड़ा गया। इनमे माथा मारकर भ्रम के सिवा क्या हासिल होने वाला है? आजकल तो साइंस ने भी इतना भ्रमित किया कि लोग सठिया से गए है। कबीर जी कहते हैं -
ढाई अक्षर प्रेम का पढ़े सो पंडित होये।
गोस्वामी जी कहते है -
वेदों का पार नही, पुरानन की कथा अनन्त
जन्म जो सुधारा चाहो, राम नाम लीजिये।
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