श्री लक्ष्मण जी शेष का अवतार है ~शेष माने क्या ?? और जिसे हम हर समय देखते है ,छीर सागर क्या है ??
राम चरित मानस के वक्ता -और सभी चौपाइओ को कीलित कर स्वयंसिद्ध मन्त्र का रूप देने वाले भगवान् शंकर है -चूंकि भगवान् शंकर सत्यम शिवम् व् सुन्दरम के प्रतीक है इसलिए श्री राम चरित मानस की चौपाइओ में सत्यता है और सुन्दर व मंगलकारी जीवन बनाने का गुण है-
जब जनक जी के यहां सीता स्वयम्वर में श्री लक्ष्मण जी कहते है
" जो तुम्हार अनुसाशन पावो -कंदुक इव ब्रम्हांड उठावो ।
कांचे घट जिमि दारौ फोरी-सकऊ मूरि मूलक जिमि तोरी।
कहते है तब लगता यही है कि यह अलंकारिक भाषा है -गेंद की तरह ब्रम्हांड को उठाना , क्या कभी किसी के लिये सम्भव हो सकता है ? ?
*मेघनाद के वध के बाद लक्ष्मण जी की स्तुति करते हुए वहा भी
"जय अनंत जय जगदाधारा " (लंका काण्ड दोहा 76 के बाद ) -शक्ती लगने के बाद भी जब मेघनाथ श्री लक्ष्मण जी को नहीं उठा पाया तो
"जगदाधार शेष किमि -उठे चले खिसिआइ " कहा गया है -श्री लक्ष्मण जी के तीन गुण-
1- वे अनंत है -**2- वे जगत के आधार है और*** 3- वे शेष है ***
शेष शब्द के आधार पर सभी जगह उन्हें हजारो फन वाले शेषनाग जिनके सर पर प्रथ्वी रखी है का अवतार मान लिया गया है -यह बात का मै खंडन नहीं करता हूँ ,यह सच है ~ परन्तु आज के वैज्ञानिक युग में समझने में कठिनाई होती है- फिर सवाल है फिर शेष क्या है ? -
साधारण गणित के शब्दों में किसी संख्या से किसी संख्या में भाग देने के बाद जो नीचे बचता है उसे शेष कहते है -
हम यहाँ प्रभु राम और उनके अभिन्न साथी श्री लखन लाल की बात कर रहे है -प्रभू को
"" पूर्ण पूर्णमिदम " कहा जाता है तो प्रभू के साथ शेष कुछ नहीं यानी 0 ही बचना है -और जीरो का स्थान यँहा कुछ और नही सम्पूर्ण ही है
- अंतरिक्ष -आकाश है -जो अनंत भी है -कहा से कहा तक है मानव मस्तिष्क सोच भी नहीं सकता- अपनी प्रथ्वी के अलावा लाखो तारे -अनेकानेक सूर्य जैसे गृह उस शून्य में शून्य के आधार पर निश्चित कक्षा में टिके है -शून्य (शेष )ही सारे जगत का आधार है-
और "कांचे घट जिमि डारो फोरी "-यहां तो रोजाना तमाम तारे (stars) शेष भगवान द्वारा कच्चे घडे के समान टूटा करते है -और ब्लैक होल में क्या समाता है कल्पनातीत है -
अभी पिछले कुछ सालो पहले - विश्व के वैज्ञानिकों ने जमीन के नीचे शून्य की स्थिति पैदा कर जगत की उत्पत्ति जानने की कोशिश की और "God point" की खोज की तब शून्य का ब्लैक होल कही सारे विश्व को निगल न ले इसका भय व्याप्त हो गया था -
छीर सागर कहा है ??
*अनंत आकाश में अनंत तारो की दुधिया रोशनी ही क्षीर सागर है जहा शेष भगवान्( जो पूर्ण है ) की शक्ती लाखो तारो और प्रथ्वी को निश्चित कक्षा में संभाले हुए है
दुसरे साधारण शब्दों में , अपने शेष नाग के लाखो फनो पर उठाये हुए है -
भगवान् विष्णु सम्पूर्ण ब्रम्हांड में व्याप्त है यानी शेष भगवान् पर शयन कर रहे है -यही तात्विक अर्थ है ********************************* राम नाथ गुप्त कचहरीटोला कन्नौज
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