Life Stages - जीवन के पड़ाव :
प्राचीन काल से मनीषियों ने जीवन को चार भागों में बाँटा है -
बाल्यकाल : धर्म शिक्षा , जीवन जीने का तरीक़ा और दिशा निर्धारित करना । ऐसा करते हुए अधिक से अधिक ऊर्जा, क्षमता विकसित करना।
युवावस्था : विवाह करके घर बसाना, वंश वृद्धि, धन कमाना और परिवार , समाज की आवश्यकताओं की पूर्ति करना ।
इस अवस्था में सामान्यतः गति , ऊर्जा का क्षय मूलाधार से नाभि तक , पहले तीन नीचे के चक्र , अर्थात भोगों (मैथुन, और खान पान , fast food etc) में होता है।
वयस्क (वानप्रस्थ): अंततः एक ऐसी अवस्था आती है , जब पाचन शक्ति क्षीण होती है, शारीरिक रोगों की शुरुआत हो , रोज़गार में झटका लगता है, या अपने बच्चों, रिश्तेदारों, दोस्तों से वियोग, वैमनस्य, तिरस्कार मिले, संसार से विरक्ति , ऊचाट होने लगे, तब समझ लेना चाहि कि हम सांसारिक (worldly) और पारलौकिक यात्रा (spiritual journey) के मोड़ पर , सन्धि पर खड़े हैं। ऐसी अवस्था में सत्संग और कथा श्रवण के द्वारा अपनी ऊर्जा को ऊर्ध्व गति दे और तप, साधना के द्वारा हृदय चक्र (४ th) को पार कर ले।
सन्यास: इस प्रकार सत्संग के प्रभाव से और भगवान के सुमिरन, कृपा से धीरे धीरे मन संसार से विरक्त होकर भगवान में रमण करने लगता है, भजन, प्रेम पुकार , करुणा जागृत हो जाती है और इंद्रियाँ परोपकार में , सेवा में अग्रसर होने लगती हैं। व्यक्ति संसार के बंधनों से मुक्त हो अपनी जीवन भर की कमाई और ज्ञान को बाँटकर मुक्त हो जाता है ।
यही भगवान राम की चार यात्रा है या जीवन के चार चरण हैं -
१) अयोध्या से विश्वामित्र गुरु के साथ आश्रम, जनकपुर यात्रा
२) अयोध्या से चित्रकूट की यात्रा
३) चित्रकूट से पंचवटी की यात्रा
४) पंचवटी से किष्किन्धा होते हुए लंका की यात्रा , जो अयोध्या में पूर्ण विराम लेती है।
हम सभी अपने परम धाम से बिछड़े हैं, और सभी को अपनी यात्रा पूरी करके परम धाम वापस जाना है ।
प्राचीन काल से मनीषियों ने जीवन को चार भागों में बाँटा है -
बाल्यकाल : धर्म शिक्षा , जीवन जीने का तरीक़ा और दिशा निर्धारित करना । ऐसा करते हुए अधिक से अधिक ऊर्जा, क्षमता विकसित करना।
युवावस्था : विवाह करके घर बसाना, वंश वृद्धि, धन कमाना और परिवार , समाज की आवश्यकताओं की पूर्ति करना ।
इस अवस्था में सामान्यतः गति , ऊर्जा का क्षय मूलाधार से नाभि तक , पहले तीन नीचे के चक्र , अर्थात भोगों (मैथुन, और खान पान , fast food etc) में होता है।
वयस्क (वानप्रस्थ): अंततः एक ऐसी अवस्था आती है , जब पाचन शक्ति क्षीण होती है, शारीरिक रोगों की शुरुआत हो , रोज़गार में झटका लगता है, या अपने बच्चों, रिश्तेदारों, दोस्तों से वियोग, वैमनस्य, तिरस्कार मिले, संसार से विरक्ति , ऊचाट होने लगे, तब समझ लेना चाहि कि हम सांसारिक (worldly) और पारलौकिक यात्रा (spiritual journey) के मोड़ पर , सन्धि पर खड़े हैं। ऐसी अवस्था में सत्संग और कथा श्रवण के द्वारा अपनी ऊर्जा को ऊर्ध्व गति दे और तप, साधना के द्वारा हृदय चक्र (४ th) को पार कर ले।
सन्यास: इस प्रकार सत्संग के प्रभाव से और भगवान के सुमिरन, कृपा से धीरे धीरे मन संसार से विरक्त होकर भगवान में रमण करने लगता है, भजन, प्रेम पुकार , करुणा जागृत हो जाती है और इंद्रियाँ परोपकार में , सेवा में अग्रसर होने लगती हैं। व्यक्ति संसार के बंधनों से मुक्त हो अपनी जीवन भर की कमाई और ज्ञान को बाँटकर मुक्त हो जाता है ।
यही भगवान राम की चार यात्रा है या जीवन के चार चरण हैं -
१) अयोध्या से विश्वामित्र गुरु के साथ आश्रम, जनकपुर यात्रा
२) अयोध्या से चित्रकूट की यात्रा
३) चित्रकूट से पंचवटी की यात्रा
४) पंचवटी से किष्किन्धा होते हुए लंका की यात्रा , जो अयोध्या में पूर्ण विराम लेती है।
हम सभी अपने परम धाम से बिछड़े हैं, और सभी को अपनी यात्रा पूरी करके परम धाम वापस जाना है ।
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