कर्म की कुशलता ही कर्म योग है ।
कुशलता का अर्थ यहाँ स्वार्थ रहित , समाज कल्यनार्थ कर्म से है ।
हम सभी दैनिक जीवन , व्यवसाय और नौकरी में अपने फ़ायदे के लिए कुछ भी करने को तय्यार रहते हैं। यहाँ तक कि अपने बच्चों को भी यही शिक्षा देते हैं की पढ़लिख कर कुछ बन जाओ और अपने पैरों पर खड़े हो जाओ, अर्थात कुछ कमाई कर सको । तो पढ़ने , व्यवसाय , नौकरी का उद्देश्य है पैसा कमाना। यहाँ तक कुछ भी ग़लत नहीं है।
पर कोई भी व्यवसाय, नौकरी में ऐसे क्षण बार बार आते हैं जब हमें निर्णय करना होता है कि ऐसा करना समाज , वातावरण और मानवता की दृष्टि से उचित होगा या नहीं। और अपने अंतहकरण से भगवान हमें सचेत भी करते हैं , पर हम अपने स्वार्थ के लिए अपने कर्तव्य से च्युत , भाग जाते है। पदोन्नति, नौकरी बचाए रखने का प्रलोभन या अधिक से अधिक मुनाफ़े का प्रलोभन किसको आकर्षित नहीं करता ? इसीलिए भगवान की स्पष्ट घोषणा है की कर्मफल पर तुम्हारा अधिकार नहीं है , अगर तुम कर्मफल की इच्छा से अपने कर्तव्य मार्ग से विलग हो गए, भटक गए, तो अंततः तुम्हें घोर परिणाम भुगतना ही पड़ेगा। यही कर्म बंधन है , जिस लाभ के लिये तुमने short cut लिया , compromise किया वो तुम्हारा पीछा नहीं छोड़ेगा। (क्रिया प्रतिक्रिया , action reaction का सिद्धान्त।)
इसके विपरीत जो अपने कर्तव्य पालन पर अडिग रहता है ,परिणाम की चिंता नहीं करता वो निष्कामी सहज ही योग की (अपने अंतहकरण, भगवान की आवाज , गीत सुनने के योग्य बनने से ) चरम स्थिति को पा जाता है और लाभ हानि, सुख दुःख आदि द्वंद्व से ऊपर उठकर संसार बंधन में नहीं फँसता।
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