Monday, July 10, 2017

का वर्षा जब कृषि सुखानी, समय चूँकि पुनि का पछतानी।

वक़्त से दिन और रात, वक़्त से कल और आज 
वक़्त की हर शह ग़ुलाम , वक़्त का हर शह पे राज।

वक़्त ने किया क्या हँसी सितम , तुम रहे न तुम , हम रहे न हम।


किसी की ज़िंदगी अपने ideal, प्रेमी, object of worship को ढूँढने, मूर्त रूप देने में निकल जाती है । और कोई पत्थर की मूर्ति में ही अपने प्रेमी , भगवान को पा लेता है। बाक़ी लालची भिखारियों की तरह इधर उधर , मैखानो, मंदिरों में दुआएँ करते रहते हैं, शायद कोई ऐसी चीज़ मिल जाए जिससे पूर्ण तृप्ति हो जाए।


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